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Sunday, 2 February 2014

मैं शायर तो नहीं (ग़ज़ल)


अश्कों की स्याही से, दिल के जज़्बात लिखते हैं,
कभी अपने तो कभी ज़माने के हालात लिखते हैं,

कौन कहता है कि अपनी ही धुन में मगन हैं वो 
हर वाकये पे नज़र रखते, ख्यालात लिखते हैं .

ग़मों का चलाते हैं कभी मुसल्सल कारवाँ,
तो कभी ढेर खुशियों कि बारात लिखते हैं.

मुआमला सियाती हो, रूहानी कि जज्बाती,
हर मामले पे शायर तो, हजरात लिखते हैं .

बेखबर खुद से हों चाहें न खबर हो अपनों की,
ज़माने भर कि मगर ये, मालूमात लिखते हैं.

फूलों कि महक, हवा के रंग, दरिया की रवानगी 
कागज़ के टुकड़े के सारी, कायनात लिखते हैं ..

6 comments:

  1. बहुत ही बढ़ियाँ गजल...
    उत्तम...
    :-)

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  2. बहुत बढ़िया ग़ज़ल शालिनी....

    अनु

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  3. वाह ! वाह ! बहुत उम्दा ग़ज़ल |

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति की चर्चा कल रविवार (25-05-2014) को ''ग़ज़ल को समझ ले वो, फिर इसमें ही ढलता है'' ''चर्चा मंच 1623'' पर भी होगी
    --
    आप ज़रूर इस ब्लॉग पे नज़र डालें
    सादर

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  5. बहुत प्यारा लेखन है जी , सभी रचनाएं जबरदस्त ! आदरणीय धन्यवाद !
    Information and solutions in Hindi ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )

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