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Sunday, 2 February 2014

जाऊं दूर तो पास बुला लेती हैं मुझे,( ग़ज़ल )

~~एक ग़ज़ल ~~
मंजिलें मेरी अक्सर सदा देती हैं मुझे
जाऊं दूर तो पास बुला लेती हैं मुझे,

रास्ता कोई भी पूरा हो पाता नहीं 
हर बार क्यों नई राह खींच लेती है मुझे 

हर बार एक ही तो ख़ता मुझसे है हुई 
तकदीर फिर क्यों नई सज़ा देती है मुझे .

मैं अंश हूँ कुदरत की, उसी ने रचा मुझे 
फिर क्यों बना करके मिटा देती है मुझे 

मेरा गुरूर मुझको फलक तक ले जाए 
तेरी खुदाई औकात दिखा देती है मुझे 

मैं कामयाबी का पता भूल जाती हूँ 
हर बार अपना वो पता देती है मुझे 

अब मुझसे तो इसको सहा जाता नहीं 
ये ज़िन्दगी जाने कैसे सहती है मुझे 

कदमों पे उसके सर ये रखना जो चाहूँ 
गैरत हमेशा रोक ही लेती है मुझे

1 comment:

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