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Saturday, 28 September 2013

सावन संग होड़ (कुण्डलिया)

कुण्डलिया 
सावन संग आज लगी, सखी नैन की होड़|
मान हार कौन अपनी, देत बरसना छोड़||
देत बरसना छोड़, नैन परनार बहे हैं |
कंचुकि पट भी भीज , विरह की गाथ कहे हैं ||
पड़े विरह की धूप, जले है विरहन का मन|
हिय से उठे उसाँस, बरसे नैन से सावन ||

16 comments:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..


    हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल पर आज की चर्चा : पीछे कुछ भी नहीं -- हिन्दी ब्लागर्स चौपाल चर्चा : अंक 012

    ललित वाणी पर : इक नई दुनिया बनानी है अभी

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  2. वाह अन्यतम भाव , सुन्दर कुंडली

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  3. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .. आपकी इस रचना के लिंक की प्रविष्टी सोमवार (30.09.2013) को ब्लॉग प्रसारण पर की जाएगी, ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें .

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  4. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,धन्यबाद।

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  5. विरह का वर्णन करने वाला सुंदर छंद। नयनों से सावन बरसने की कल्पना पीडा को और गहरा बना देता है।

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  6. बहुत सुन्दर कुण्डलियाँ
    नई पोस्ट अनुभूति : नई रौशनी !
    नई पोस्ट साधू या शैतान

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  7. सुन्दर होड़ नैनों की .... रस जैसे बरसते शब्द ... बहुत सुन्दर भाव ...

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  8. bahut hi sunder bhaav liye rachna

    shubhkamnayen

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  9. विरह की आंच से संसिक्त सात्विक रचना छंद सिद्ध।

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