Pages

Tuesday, 23 July 2013

फुर्सत तो मिले

फुर्सत तो मिले
एक बार ज़रा
न जाने कितने काम करने हैं
कितने ख्याल पकाने हैं
कितने ख़्वाबों में रंग भरने हैं

हाँ, छुट गयी थी बहुत पहले
एक ग़ज़ल आधी अधूरी-सी
कुछ कहि,कुछ अनकही
कुछ अनसुलझी पहेली-सी

सिरे उसके अब पकड़
कुछ समेट कर धरने हैं

हर बार का बहाना कि बस अभी
फुर्सत अभी ज़रा सी  मिलती है
इस 'अभी' के इंतज़ार की
घड़ी, न जाने कब तक बहलती है
हम सोचते रहते कि बस
अब हिसाब करते हैं

फुर्सत तो मिले ....एक बार ज़रा

9 comments:

  1. फुर्सत तो मिले जरा
    बहुत खुबसूरत रचना !!

    ReplyDelete
  2. फुर्सत जो है की मिलती नहीं ,बिलकुल सही कहा ये अभी कभी आती नहीं

    ReplyDelete
  3. कई बार उम्र लग जाती है फुरसत के कुछ पल नहीं मिलते ...
    गहरा एहसास लिए पंक्तियाँ ....

    ReplyDelete
  4. बस यही शिक़ायत है... वक़्त से...सबसे...खुद से...
    कि... फ़ुर्सत अब मिलती नहीं.... :((

    ReplyDelete
  5. सुन्दर रचना... फुर्सत तो मिले !

    ReplyDelete
  6. बहुत सुन्दर रचना

    ReplyDelete
  7. फुर्सत मिला नहीं करती अब ज़माने में ..........

    ReplyDelete
  8. वाकई ..
    कई काम बाकी हैं !

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.