अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
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Friday, 26 July 2013
राधा बनी कान्हा
(मुक्त छंद) तू मेरी राधा बन कान्हा, मैं अब तेरा कान्हा बनूँगी | गौर वर्ण को तज अपने , तेरा श्याम वर्ण गहूँगी | मोर मुकुट सिर धारुँगी, पर मुरली अधरों पर न धरुँगी | ग्वालों संग वन-वन भटकूँ, लोक लाज सगरी तजूंगी ||
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बहुत सुंदर, शुभकामनाये
ReplyDeletebahut badhiya ....
ReplyDeletegreat very nice
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteखूबसूरत भाव ... प्रेम विभोर करता छंद ...
ReplyDeleteसुन्दर भाव । तू मेरी राधा बन अब मैं तेरी कान्हा बनूँगी । एक अलग भाव
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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