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Friday, 31 May 2013

गति और ठहराव ...


गति और ठहराव 
1.
गति का वरदान तुम्हें मैं,
स्थिरता का शाप झेलती
भँवर पड़े तेरे पैरों में
मैं ठहराव की आस देखती 

मैं जड़ तुम थे जंगम
कैसे संभव होता संगम
या मुझमें उद्भव हो गति
या तुझमें ठहराव देखती 


2.

नदी थी मैं 
मिला था 
गति का वरदान मुझे 
निरंतर बहना 
नियति  मेरी  
किनारे से  तुम 
बस वहीँ रुके रहे 
मै बढ़ी, बही, छलकी, मचली 
साथ तुम्हे ले चलने को 
व्याकुल था मन 
पर 
तुम न चले 
चलना नियति न थी तुम्हारी 
पर साथ मेरा देने को 
कर लिया तुमने अपना 
विस्तार अनंत 
जहाँ तक तुम चली 
साथ देते रहे मेरा 
पर 
स्थिर बन 

16 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार(1-6-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
    सूचनार्थ!

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  2. वाह आदरणीया शालिनी जी वाह बहुत ही सुन्दर लाजवाब हृदयस्पर्शी रचना क्या कहने ढेरों बधाई स्वीकारें.

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  3. बहुत खूब उम्दा प्रस्तुति,,

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  4. प्रेम का महीन अहसास कराती
    सुंदर रचना
    बहुत खूब
    बधाई

    आग्रह हैं पढ़े,मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें
    तपती गरमी जेठ मास में---
    http://jyoti-khare.blogspot.in

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  5. आपकी यह रचना कल शनिवार (01 -05-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  6. व्यथा , सुन्दर रचना

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  7. अति सुन्दर काव्य रचना.

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  8. बहुत सुंदर .रुक जाना नहीं .

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  9. अच्छी रचना, बहुत सुंदर
    क्या कहने


    नोट : आमतौर पर मैं अपने लेख पढ़ने के लिए आग्रह नहीं करता हूं, लेकिन आज इसलिए कर रहा हूं, ये बात आपको जाननी चाहिए। मेरे दूसरे ब्लाग TV स्टेशन पर देखिए । धोनी पर क्यों खामोश है मीडिया !
    लिंक: http://tvstationlive.blogspot.in/2013/06/blog-post.html?showComment=1370150129478#c4868065043474768765

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  10. लाजवाब मनभावन प्रस्तुति.

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  11. बहुत सुन्दर भावपूर्ण गहन अभिव्यक्ति...दोनों ही रचनाएँ दिल को छू गयीं!

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  12. निर्विकार भाव से कोई कोई ही साथ दे सकता है ...
    भावपूर्ण रचना ...

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  13. महत्वपूर्ण यह है कि साथ तो दिया। नदी सा ही प्रवाह लिए सुंदर कविता।

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