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Tuesday, 28 May 2013

जुस्तजू

ज़ख्म जुल्मों के तेरे अब, ये दिल न झेल पाएगा 

जुस्तजू में गुजारी जीस्त, जुस्तजू में फ़ना हो जाएगा 


जुर्रत आजमाना चाहता है तू, पेशकदमी-ए-इश्क में

तू ज़रा हद तो खींच के देख, उस पार ही हमें पाएगा.


ज़रखरीद नहीं तेरे हम, कि हिकारत हमसे तू बरते
,
लौटेंगे अब न कभी जो, नरमी से भी बुलाएगा.



जायज़ नहीं हमपे तेरा, यूँ जोर-ए-हक़ जताना


जोर आजमाइश से कहाँ दिलों को जीत पाएगा .

10 comments:

  1. शालिनी जी ग़ज़ल बहुत ही बढ़िया है लेकिन उर्दू में हाथ तंग है तो अच्छा होता शब्दों के अर्थ मिल जाते नीचे तो ... अगर आपको कोई परेशानी न हो तो ....
    सादर आभार ....

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  2. बढ़िया.........
    ज/ज़ के ढेर सारे लफ़्ज़ों से सामना हुआ....
    :-)

    सस्नेह
    अनु

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  3. बहुत उम्दा,लाजबाब गजल के लिए बधाई ,, शालिनी जी

    Recent post: ओ प्यारी लली,

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  4. उर्दू लफ़्ज़ों का शानदार प्रयोग.........दूसरा शेर अपने मानी में ज़बरदस्त ।

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  5. जबरदस्त है सभी शेर ... अलग अंदाज़ है कहाँ का सभी शेरों में ...

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  6. बहोत खूब शालिनी ...आखरी शेर ख़ास तौर पर पसंद आया

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  7. सुंदर भावों की सशक्त प्रस्तुति

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