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Sunday, 3 March 2013

तुम्हारे शब्द



तुम्हारे शब्द 

पानी की लहरों पर 

बहते हुए

कहीं दूर चले जा रहे थे 

गूंज रही थी कानों में 

धीरे-धीरे

दूर होती जा रही थीं 

उनकी आवाजें

पर आगे तो 

भंवर है एक बहुत बड़ा 

अनंत, अंधकारमय 

सुना है कि वहाँ से 

शब्द कभी 

वापस नहीं आते 

उस भंवर तक पहुंच पाएँ

उससे पहले

छान निकालूँ इन्हें 

दिल की छलनी में

और धुप में सुखा 

सहेजूँ इन्हें 

यादों की किताब में 

गुलाब की तरह 

ताकि जब भी पन्ने पलटें 

महक उठे तन-मन 

और एक बार फिर से जी लूँ मैं 

तुम्हारे शब्द

9 comments:

  1. बहुत सुंदर भाव ...
    शुभकामनायें ...शालिनी जी ...

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  2. वाह !!!बहुत ही सुंदर रचना ,,,शालिनी जी,,,

    RECENT POST: पिता.

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  3. bahut khoobsurat abhivyakti shaalini ji..chaanu inhe dil ki chalni mei aur dhoop mei sukha ke kitabo mei sahej lu jaise gulab ...tan man mehka dete hain aise hi ye shabd bhi mehkaate rahenge ...aapki kavita se aaj ka din mehek gaya :-)
    --saabhar


    मेरा लिखा एवं गाया हुआ पहला भजन ..आपकी प्रतिक्रिया चाहती हूँ ब्लॉग पर आपका स्वागत है

    Os ki boond: गिरधर से पयोधर...

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  4. सुन्दर भाव लिए बेहतरीन प्रस्तति,आभार शालिनी जी.

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  5. सुन्दर प्रस्तुति.
    तुम्हारी याद जब आती तो मिल जाती ख़ुशी हमको
    तुमको पास पायेंगे तो मेरा हाल क्या होगा

    तुमसे दूर रह करके तुम्हारी याद आती है
    मेरे पास तुम होगें तो यादों का फिर क्या होगा

    तुम्हारी मोहनी सूरत तो हर पल आँख में रहती
    दिल में जो बसी सूरत उस सूरत का फिर क्या होगा

    अपनी हर ख़ुशी हमको अकेली ही लगा करती
    तुम्हार साथ जब होगा नजारा ही नया होगा

    दिल में जो बसी सूरत सजायेंगे उसे हम यूँ
    तुमने उस तरीके से संभाला भी नहीं होगा

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  6. भावपूर्ण उम्दा प्रस्तुति,,

    Recent post: रंग,

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  7. बहुत खूबसूरत ख्याल ... वो शब्दों को जीने की कोशिश .. जिनमें जीवन कैद है ...

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  8. शब्दों की छलनी में धूप लगालें धुप को .बहुत बढ़िया लिख रहीं हैं आप नए रूपक ,अभिनव रूपकात्मक अभिव्यक्ति जैसे वेगवान झरना .

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