(दो दिन से बहुत व्याकुल है मन ..... एकदम स्तब्ध ...... सहसा कोई प्रतिक्रिया कर पाना भी संभव न हुआ ...... लोगों की कविताओं में, विचारों में उनका आक्रोश पढ़ा ...... पर मेरा मन तो कहीं भीतर तक सिहर गया है )
नहीं
आज कविता नहीं
अपना डर लिख रही हूँ
वज़ह ...............
कई सारी हैं
पर सबसे बड़ी
एक जवान बेटी की माँ हूँ
(न न
गलत मत समझिए
रुढिवादी नहीं हूँ
कि बेटी को बोझ समझूँ )
और दूसरी
देश की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहती हूँ
रोज सुबह बेटी को जाना है
कॉलेज
कॉलेज जो है दिल्ली में
बहुत फ़क्र था अब तक
कि दिल्ली के अच्छे कॉलेज में पढ़ती है
पर आज
हालात बदल गए हैं
फ़क्र की जगह लेली है
एक अनाम से डर ने
अब घर से निकल गाड़ी में बैठने तक
अकेली होगी वह
रास्ता भले ही दो कदम का हो
पर होगी तो अकेली ही
फिर मेट्रो पर गाड़ी पार्क कर
स्टेशन तक भी अकेले ही जाना होगा
और सारा दिन कॉलेज में
फिर वापसी................
उसे तो समझाई हैं
बहुत सारी
ऊँच-नीच, सावधानी की बातें ,
पर खुले आम घूम रहें हैं
जो दरिंदे
उन्हें समझाने वाला है कोई?
क्या करूँ
हरदम साथ रहना भी तो
संभव कहाँ
बड़े फ़क्र से कहा था
पीछे नहीं रहेगी बेटी मेरी
पुरुषों के कंधे से कंधा मिला
चलेगी..... सामना करेगी हर चुनौती का
आज अपना ही विश्वास
क्यों डगमगाता सा प्रतीत हो रहा
कहीं गलती तो नहीं की है..
क्या सुरक्षित है वह
दरिंदों से भरी दिल्ली में ........
आशा .........
वह क्या है ?
अब तो सहारा है बस
आस्था का
क्या कहा?
कानून और पुलिस पर आस्था!
कैसा मजाक करते हैं ?
...............
अगर इतनी ही सक्षम होती
पुलिस या फिर कानून
तो क्या हो पाता
दरिंदगी का
यह नंगा नाच .........
'डर'
क्या यही नियति बन जायेगी
लड़कियों की
माँओं की ..........
नहीं
आज कविता नहीं
अपना डर लिख रही हूँ
वज़ह ...............
कई सारी हैं
पर सबसे बड़ी
एक जवान बेटी की माँ हूँ
(न न
गलत मत समझिए
रुढिवादी नहीं हूँ
कि बेटी को बोझ समझूँ )
और दूसरी
देश की राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहती हूँ
रोज सुबह बेटी को जाना है
कॉलेज
कॉलेज जो है दिल्ली में
बहुत फ़क्र था अब तक
कि दिल्ली के अच्छे कॉलेज में पढ़ती है
पर आज
हालात बदल गए हैं
फ़क्र की जगह लेली है
एक अनाम से डर ने
अब घर से निकल गाड़ी में बैठने तक
अकेली होगी वह
रास्ता भले ही दो कदम का हो
पर होगी तो अकेली ही
फिर मेट्रो पर गाड़ी पार्क कर
स्टेशन तक भी अकेले ही जाना होगा
और सारा दिन कॉलेज में
फिर वापसी................
उसे तो समझाई हैं
बहुत सारी
ऊँच-नीच, सावधानी की बातें ,
पर खुले आम घूम रहें हैं
जो दरिंदे
उन्हें समझाने वाला है कोई?
क्या करूँ
हरदम साथ रहना भी तो
संभव कहाँ
बड़े फ़क्र से कहा था
पीछे नहीं रहेगी बेटी मेरी
पुरुषों के कंधे से कंधा मिला
चलेगी..... सामना करेगी हर चुनौती का
आज अपना ही विश्वास
क्यों डगमगाता सा प्रतीत हो रहा
कहीं गलती तो नहीं की है..
क्या सुरक्षित है वह
दरिंदों से भरी दिल्ली में ........
आशा .........
वह क्या है ?
अब तो सहारा है बस
आस्था का
क्या कहा?
कानून और पुलिस पर आस्था!
कैसा मजाक करते हैं ?
...............
अगर इतनी ही सक्षम होती
पुलिस या फिर कानून
तो क्या हो पाता
दरिंदगी का
यह नंगा नाच .........
'डर'
क्या यही नियति बन जायेगी
लड़कियों की
माँओं की ..........
बहुत ही सलीके से बिना चीखे चिल्लाये अपनी सारी वेदना समय का सच आपने कविता में उकेर दिया है |एक बहुत ही अच्छी कविता पढने को मिली |आभार
ReplyDeleteबहुत- बहुत धन्यवाद जयकृष्ण जी ... वास्तव में वेदना और दर ही व्यक्त कर पाई हूँ..कविता है या नहीं कह नहीं सकती|
Delete:( kavita padh kar dar ka samjha ja sakta hai...!!
ReplyDeletepar... shayad... !!
kuchh badle....
ummid karna bura bhi nahi....
मुकेश जी, भारत कि जनता की यही तो खासियत है...कुछ दो या न दो ...बस उम्मीद बंधा दो!
Deleteमत सोचो की कुछ नहीं होगा ,
ReplyDeleteहोगा कत्ले आम दरिंदों का ,
सबला के हाथों ,उड़ते परिंदों (दरिंदों )का ,
सत्ता के बाजों का .
खाली नहीं जाएगा संघर्ष मौत के साथ
जूझती उस फिजियो का जो जीना चाहती है .
भर दो मिर्ची लाल, आँखों में इनकी ,
भर दो मलद्वार में .
याद आये इन्हें छटी का दूध .
वीरेंद्र जी...बस अब ये आक्रोश नही थमें.... यह बहुत ज़रूरी है बदलाव के लिए!
Deleteसत्य कहा है शालिनी जी यह डर दिन ब दिन बढ़ता जा रहा और स्वाभाविक होता जा रहा है ऐसा प्रतीत होने लगा है कि भारत देश पलायन कर लें, यहाँ तो कोई सुरक्षित ही नहीं है, हर कदम पर नया डर एक नया खतरा उत्पन्न होता है आखिर यह सिलसिला और कब तक चलेगा, और कितनी जांने जायेंगी और किनती बहनों की इज्ज़त तार- होगी, बस करो यहीं ख़तम करो यही समय की मांग है यही हमारी चाह है.
ReplyDeleteअरुण, पलायन नही..प्रतिकार ज़रूरी है!
Deleteसही कहा शालिनी ......
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ..........बस एक बात कि डर के आगे ही जीत है ।
ReplyDeleteठीक कहा इमरान जी...
Deleteधन्यवाद वंदना जी!
ReplyDeleteअरुण भाई परवाज़ ज़िन्दगी की हौसलों से भरी जाती है अपने आप को उस युवा सम्राट में शामिल न करो जो शान्ति की बात भी वीर रस में करता हुआ बाजू चढ़ा लेता है .केजरीवाल अकेले नहीं हैं
ReplyDelete.अच्छे लोग राजनीति में आयेंगे तो रास्ता बनेगा .
ये वहशी भी दबाके भागेंगे .
आज के हालात में माँ के लिए बेटी प्रति चिंतित होना स्वाभाविक है,,,,
ReplyDeleterecent post: वजूद,
वाकई देश में हुई एक घटना ने हिलाकर रख दिया है। देश ही नही विदेश में रहने वाले भारतीय भी इस घटना को लेकर बेहद दुखी हैं। आप फ़िक्र ना करें ना ही कोई डर को दिल में पालें। इस घटना के बाद कानून व्यवस्था काफी हरकत में आई है। उम्मीद है की इस तरह की घटनाओं पर लगाम जरुर लगेगी।
ReplyDeleteवाकई देश में हुई एक घटना ने हिलाकर रख दिया है। देश ही नही विदेश में रहने वाले भारतीय भी इस घटना को लेकर बेहद दुखी हैं। आप फ़िक्र ना करें ना ही कोई डर को दिल में पालें। इस घटना के बाद कानून व्यवस्था काफी हरकत में आई है। उम्मीद है की इस तरह की घटनाओं पर लगाम जरुर लगेगी।
ReplyDeleteयकीनन आज का सामाजिक परिदृश्य इस तरह के डर को तो जन्म देता ही है...
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति।।।
धन्यवाद शिवम जी!
ReplyDeleteआह हह कितना असुरक्षित बना दिया है इन घटनाओं ने हर माँ हर बच्ची को कहाँ गए वो स्वस्थ समाज के ठेके दार क्या यही सूरत थी उनके काल्पनिक समाज की ,आजकल ही छोटी छोटी बच्चियों की कवितायें भी पढने को मिली ,लगा कलियाँ खिलने से पहले ही प्रदूषित वायु में मुरझाने लगी हैं पर हम माँ ही डर कर बैठ गई तो कैसे चलेगा ,वक़्त है दुर्गा रणचंडी बनने का अपनी बच्चियों को आश्वासन और हिम्मत दो उनकी ढाल हमें ही बनना है
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा है आपने राजेश जी!
Deleteबहुत गहरे डर और दर्द को समेटे सीधे सरल शब्द..जो भीतर तक सिहरा जाते हैं..
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद अनीता जी!
Deleteसभी माओं का यही हाल है..
ReplyDeleteकैसे बचाए अपनी बेटियों को इन दरिंदो से....
आपका डर जायज है....
http://veerubhai1947.blogspot.in/
ReplyDeleteTime to take a stand /Push through police reform immediately if we are to prevent more rapes and control crime /Kiran Bedi /TOI,DECEMBER 22,2012 Editorial page .Mumbai ed .p16
The same article is available in all editions of TOI,Delhi ,Banglore ,Mumbai
Pl read this article in Hindi on RAM RAM BHAI TOMORROW .
Thanks for your kind comments.
ReplyDeleteख़ुशी की बात है यह जान बाज़ युवती (फिजियो )आज चंद कदम चली है अब उसे ज़रुरत है Intestinal implant की आंत्र प्रत्यारोपण की उसकी छोटी आंत संक्रमण की वजह से काटनी पड़ी है .कल दिल्ली रैप पर पढ़िए किरण बेदी के विचार राम राम भाई पर हिंदी में .
ठंडी की सिहरन से यह सिहरन ज्यादा तेज और खतरनाक है. शब्दशः सहमत हूँ आपके विचारों से.
ReplyDeleteshamyikta se pripoorn sargarbhit rachana ke liye abhar .
ReplyDeleteह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना
ReplyDeletesamaj me vyapat darr ko vyakt karti bhavpurn Rachna...
ReplyDeleteकब तक तू ,अबला बनके रहेगी,
http://ehsaasmere.blogspot.in/2012/12/blog-post_23.html
apka dar wazib hai
ReplyDeleteशालिनी जी ,मन पे काबू रखो ,निर्भया बनो ! वर्ष 2012 ने जो चिंगारी छेड़ी है अन्ना जी से निर्भया तक ,जब अकेली जान आधी दुनिया की पूरी तथा इंसानियत की लड़ाई लड़ सकती है मौत को
ReplyDeleteधता बता सकती है तब एक फर्ज़ हमारा
भी है सेकुलर वोट की बात करने वालों को हम भी मुंह की चखाएं .
,शुक्रिया आपकी सद्य टिपण्णी का .
ram ram bhai
मुखपृष्ठ
शुक्रवार, 28 दिसम्बर 2012
एक ही निर्भया भारी है , इस सेकुलर सरकार पर , गर सभी निर्भया बाहर आ गईं , तब न जाने क्या होगा ?
http://veerubhai1947.blogspot.in/
very nice poetry..
ReplyDeleteइस डर से बाहर तो निकलना ही होगा |
ReplyDeleteनये ब्लॉग पर पधारें व अपने विचारों से अवगत करवाएं |
टिप्स हिंदी ब्लॉग की नई पोस्ट : पोस्ट का टाईटल लिखें 3d Effect के साथ, बिना फोटोशाप की मदद के
अब हम सब को इस डर से बाहर निकलना होगा...बहुत सह लिया अब सब को मिल कर मुकाबला करना होगा...
ReplyDeleteअब हम सब को इस डर से बाहर निकलना होगा...बहुत सह लिया अब सब को मिल कर मुकाबला करना होगा...
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