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Tuesday, 11 December 2012

कौन तुम?


हे रहस्यमयी!
कौन तुम?

सद्यस्नात 
गीले केश झटक तुमने 
बिखेर दिए 
तुहिन हीरक कण
अपने हरित आँचल पर
नत मुख बैठ 
अब चुनतीं 
स्वर्णिम अंशु उँगलियों से 

हे स्वर्णिमा!
तुम कौन?

रवि बिंदिया
भाल पर सजा
जब निहारती 
सरित मुकुर में 
हो अभिभूत 
निज सौंदर्य से 
बिखर-बिखर जाती 
लाज की लाली 
मुखमंडल पर

कौन तुम ?
हे रूपगर्विता !

काली अलक 
सँवार तारों से 
कर अभिसार 
बैठी चन्द्र पर्यंक
किसकी प्रतीक्षारत

हे अनिन्द्य सुंदरी !
तुम कौन?

मंद मलयानिल से  
हटा कुहासे का झीना आँचल 
 अनावृत्त 
दीप्त देह तुम्हारी 
जगमग जग सारा 
बिखर गया हर ओर 
आलोक तुम्हारा 

हे आलौकिक आलोकमयी 
तुम कौन?






33 comments:

  1. प्रकृति के सौन्दर्य को खूबसूरत शब्दों में उतार दिया है ... सुंदर रचना

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  2. बहुत उम्दा,लाजबाब शब्दों की अभिव्यक्ति...

    recent post: रूप संवारा नहीं,,,

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  3. मैं प्रेम हूँ....जानती नहीं....
    देखो आईने में...

    अनु

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  4. सुंदर शब्द संयोजन

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  5. जिसकी गोद में सर रख रोया
    करुण मयी , तुम कौन हो ?

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  6. शालिनी जी खूबसूरत रचना हेतु ढेरों बधाइयाँ

    अरुन शर्मा

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  7. बहुत खूबसूरत रचना।

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  8. जितनी लाजवाब उर्दू ,उतनी ही लाजवाब हिन्दी। बहुत अच्छा लिखा है ,लेकिन मेरे समझ में बहुत कम आया।

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    1. आमिर ... आपके लिए कुछ सरल करते हुए लिख रही हूँ
      हैरान हूँ देख रूप तुम्हारा
      कौन हो तुम, क्या है राज़ तुम्हारा

      नहाकर आई हो अभी
      झटक जुल्फें बिखेर दिए तुमने
      ओस के हीरे
      अपने हरे दामन पे सारे के सारे
      अब किरणों की उँगलियों से
      हो समेट रही

      सोने स दमके रूप तुम्हारा
      कुछ तो कहो क्या राज़ तुम्हारा

      माथे पे सजाके सूरज की बिंदिया
      जब निहारती चेहरा
      दरिया के दर्पण में
      अपने ही रूप पे हो निसार
      शर्माती जब
      बिखर-बिखर जाती लाज की लाली

      गुमाँ अपने ही रूप पर करने वाली
      कौन तुम क्या राज़ तुम्हारा

      काली जुल्फों में
      टाँक सितारे
      सज संवर के
      पिया मिलन को हो तैयार
      बैठी चंद पलंग पे
      तू करती किसका इन्तेज़ार

      चमके बेदाग हुस्न तुम्हारा
      कौन तुम क्या नाम तुम्हारा

      हवा के धीमे से झोंके ने जब
      सरकाया कोहरे का आँचल
      जामगा गया रोशन जिस्म से
      जहां ये सारा का सारा

      रौशन उस जहाँ की रौशनी से
      कौन तुम , क्या नाम तुम्हारा

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  9. प्रकृति को सुनहरे शब्दों में बाँधने का प्रयास है ...

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  10. प्राक्रतिक शब्दों का शरीर के अंगो के अछा शमावेश किया है आपने बहुत ही लाजवाब और सार्थक अभिव्यक्ति!
    आप मेरे ब्लॉग मे पधार कर अपने अनुज का उत्साहवर्धन करे
    http://nimbijodhan.blogspot.in/

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  11. बहुत ही सुन्दर हिंदी के शब्दों का सटीक प्रयोग ।

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  12. बहुत बढ़िया ...

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  13. बहुत सुंदर बिल्कुल प्रेमपूर्ण ...बधाई .आप भी पधारो
    http://pankajkrsah.blogspot.com
    स्वागत है

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  14. बहुत ही सुंदर, कोमल भावों भरी रचना।।।

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  15. jabab nahi mere pass.. bethareen rachna...
    khubsurat ahsaas se bhari..
    maine ab aapke blog ko subscribe kar liya hai, barabar aata rahunga..:)

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  16. chnda kee chaandni me jhumen jhumen dil meraa

    sameer si bahti apratim rachnaa ,bhaav arth aur shbd saundarya sab kuchh ek saath .

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  17. सुन्दर चित्र के संग भाव कनिका ,अभिनव समेटे अपने छोटे से कलेवर में . भाव अर्थ और सौन्दर्य की अनुपम छटा ,रूप की पनिहारिन सी रचना है ये .

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  18. संगीता जी, धीरेन्द्र जी,अनु जी, राकेश कौशिक जी, सतीश जी, अरुण जी, वंदना जी, आमिर भाई, दिगंबर जी, इमरान जी, उपासना जी,संगीता जी, यशवंत जी,पंकज जी, अंकुर जी, मुकेश जी, रीना जी एवं वीरेंद्र जी .......... आप सभी का हृदय से आभार ...आपके मार्गदर्शन व प्रेरक टिप्पणियों की सदा आकांक्षी रहूंगी.
    साभार
    शालिनी

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  19. शालीनी जी क्या खूबसूरत लाइनें लिखी हैं....वाह क्या बात है....बेहद सुंदर

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  20. अप्रतिम रचना .शुक्रिया आपकी सद्य टिप्पणियों का .

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    1. वीरेंद्र जी, आपका बहुत बहुत धन्यवाद.

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  21. बहुत ही खूबसूरत कविता |

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  22. कवि मन की उंगलिओं ने मात्र सटीक शब्द ही टाइप किये और बड़ी शालीनता से उन्हें फिट किया .प्रक्रति के दामन में नारी की वास्तविक सुन्दरता को सूक्ष्मता से पेश किया .बधाई .सभी के मन में ,कितनी भी आयु क्यों न हो जोश सा आता है. आज के अश्लील ,प्रदूषित ,अशिष्ट और ग्लेमर और अंधाधुंध इन्टरनेट के उपयोग से नारी की सुन्दरता की परिभाषा ही बदल गयी है.

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    1. हार्दिक आभार राजकुमार जिंदल जी .. आपकी समीक्षा बहुत प्रेरणादायी है :)

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  23. बहुत सुंदर और सटीक .बधाई .

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  24. खुबसुरत रचना शालिनी जी वाकई शब्दोँ का संयोजन लाजवाब है ।

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    Replies
    1. हार्दिक आभार सुब्रत जी

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