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Monday, 2 July 2012

तन्हाई


आज
न जाने कितने दिन बाद
खुद अपने साथ
अकेली हूँ मैं

कितने ही चेहरों-आवाजों,
किस्सों- कहानियों,
शिकवों शिकायतों,
हँसी-ठहाकों के बीच
खुद से मुलाकात ही
कहाँ हो पायी थी

कितना कुछ था कहने को,
बताने को , बतियाने को
पर इस जमघट में
कहाँ  सुनोगी तुम अब मेरी
बस यही सोच,  
झिझक में
दूर खड़ी
करती रही इंतज़ार
इस चिरपरिचित
तन्हाई का
जब सिर्फ मैं ही
अपने साथ में हूँ ........

10 comments:

  1. बहुत बढ़िया मैम!

    सादर

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  2. बड़े अनमोल पल होते हैं जो हमने खुद के साथ बिताये होते हैं......
    यही तो हमारे व्यक्तित्व का विकास करते हैं....

    सुन्दर भाव शालिनी

    अनु

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  3. अपनी तन्हाई के साथ बातें करना कभी कभी अचा लगता है ... संजो के रखना जरूरी है ऐसे लम्हों कों ...
    बहुत खूब ..

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  4. तन्हाई में ही आत्म निरीक्षण होता है.....सुन्दर विचार।

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  5. करती रही इंतज़ार
    इस चिरपरिचित
    तन्हाई का
    जब सिर्फ मैं ही
    अपने साथ में हूँ ....

    बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,सुंदर रचना,,,,

    MY RECENT POST...:चाय....

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  6. बहुत सुन्दर भाव...
    सुकुनभरी अहसास दिलाती
    रचना...:-)

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  7. मैं और मेरी तन्हाई अक्सर ये बातें करते हैं :)..बहुत सुन्दर अनुभूति है आपकी.

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  8. एक बेहतरीन भाव लिए सुंदर कविता.....बधाई

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  9. आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

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  10. सुन्दर भाव शालिनी..

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