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Tuesday, 29 May 2012

कितनी बार


कितनी ही बार
बना कर मिटाई है
तुम्हारी तस्वीर
शायद तुम ऐसे दिखते होगे 
या वैसे
सदा भ्रम में ही रही
कितनी ही बार सुनी है 
एक जानी-पहचानी
मगर.... अपरिचित आवाज़
और फिर.....
अनगिनत अनुमान
किसकी होगी यह ध्वनि?
क्या तुम्हारी?
क्या तुम्हीं अक्सर, कानों में 
धीरे से फुसफुसाकर
एक अनजान आमंत्रण दे 
कर जाते विभोर 
कितनी ही बार तुम्हारा 
अनछुआ स्पर्श
धीरे से सहला
कर जाता स्पंदित
रस सराबोर 
वो ध्वनि, वो तस्वीर, वो स्पर्श
क्या तुम्हारा ही है
या मन है थामे
कोरी कल्पना की  डोर
क्यों खींच रखे हैं तुमने
भ्रम के परदे चहुँ ओर
कुछ दीखता, कुछ अनदेखा
धुंधलापन
तोड़ क्यों नहीं देते अब ये भ्रमजाल
देकर दरस कर क्यों नहीं देते
उद्धार !!!

35 comments:

  1. तोड़ क्यों नहीं देते अब ये भ्रमजाल
    देकर दरस कर क्यों नहीं देते
    उद्धार,,,,,,,

    सुंदर अहसासों की प्रस्तुति,,,,,

    RECENT POST ,,,,, काव्यान्जलि ,,,,, ऐ हवा महक ले आ,,,,,

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    1. धन्यवाद धीरेन्द्र जी!

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  2. एक संक्षिप्त परिचय तस्वीर ब्लॉग लिंक इमेल आईडी के साथ चाहिए , कोई संग्रह प्रकाशित हो तो संक्षिप ज़िक्र और कब से
    ब्लॉग लिख रहे इसका ज़िक्र rasprabha@gmail.com

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    1. धन्यवाद रश्मि जी, आपने जो आज्ञा दी है उसे शीघ्रातिशीघ्र पूर्ण करना मेरा सौभाग्य होगा

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  3. बढ़िया है....दरस होगा...उद्धार भी ज़रूर होगा

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    1. धन्यवाद, डॉक्टर निधि टंडन जी!

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना..

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद, राजपुरोहित जी!

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  5. कितनी ही बार तुम्हारा
    अनछुआ स्पर्श
    धीरे से सहला
    कर जाता स्पंदित
    BEAUTIFUL LINES WITH EMOTIONS AND DEEP FEELINGS

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    1. धन्यवाद रमाकांत जी!

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  6. बहुत सुदर । मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है।
    धन्यवाद ।

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  7. वाह बहुत सुंदर प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट "बिहार की स्थापना के 100 वर्ष पर" आपके प्रतिक्रियाओं की आतुरता से प्रतीक्षा रहेगी । धन्यवाद ।

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    1. धन्यवाद प्रेम जी.....

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  8. सुभानाल्लाह.....ऐसे ही परदे के पीछे से लुका छिपी खेलता है वो ।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद इमरान जी!

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  9. या मन है थामे
    कोरी कल्पना कि डोर
    क्यों खींच रखे हैं तुमने
    भ्रम के परदे चहुँ ओर
    कुछ दीखता, कुछ अनदेखा
    धुंधलापन
    तोड़ क्यों नहीं देते अब ये भ्रमजाल
    देकर दरस कर क्यों नहीं देते
    उद्धार
    बहुत बढ़िया प्रस्तुति है काव्यात्मक व्यंजना .कृपया जहां 'कि 'शब्द प्रयोग है वहां 'की ' कर दें .
    .कृपया यहाँ भी पधारें -
    वैकल्पिक रोगोपचार का ज़रिया बनेगी डार्क चोकलेट
    http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/2012/06/blog-post_03.html और यहाँ भी -
    साधन भी प्रस्तुत कर रहा है बाज़ार जीरो साइज़ हो जाने के .
    गत साठ सालों में छ: इंच बढ़ गया है महिलाओं का कटि प्रदेश (waistline),कमर का घेरा
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

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    इस साधारण से उपाय को अपनाइए मोटापा घटाइए ram ram bhai
    रविवार, 3 जून 2012
    http://veerubhai1947.blogspot.in/

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  10. बहुत सुदर

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  11. क्यों खींच रखे हैं तुमने
    भ्रम के परदे चहुँ ओर
    कुछ दीखता, कुछ अनदेखा
    धुंधलापन
    तोड़ क्यों नहीं देते अब ये भ्रमजाल
    देकर दरस कर क्यों नहीं देते
    उद्धार

    याद आ गईं ये पंक्तियाँ पढ़ते पढ़ते -कितनी बार द्वार से लौटा छूकर बंद किवाड़ तुम्हारे ..ऐसी स्थितियां होतीं हैं कई मर्तबा ...बढ़िया बिम्ब संजोये हैं आपने .

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सर, आपके द्वारा दिए गए सुझाव पर अमल करने का प्रयास करूंगी .

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  12. hridaysparshi bhaav ...!!
    shubhkamnayen.

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    1. धन्यवाद अनुपमा जी!

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  13. सुन्दर शालीन भावमय प्रस्तुति.
    हृदयस्पर्शी और आनन्दित करती.

    समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईएगा,शालिनी जी.

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  14. बहूत सुंदर..
    सच में ह्रदयस्पर्शी रचना...
    शानदार .....

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  15. मेरे ब्लॉग पर आपके आने का बहुत बहुत शुक्रिया,शालिनी जी.

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  16. कई बार वो अनछुआ एहसास उन्ही ही आ-आकर जाता रहता है.. और जब एक दिन टिक जाता है ज़हन में.. तो उद्धार निश्चित होता है..
    बहुत सुन्दर रचना
    सादर

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  17. बहुत ही सुन्दर .....शानदार प्रस्तुति....

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    Replies
    1. धन्यवाद राजपुरोहित जी!

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  18. उहापोह और एहसास का स्वर

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    1. धन्यवाद वर्मा जी!

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  19. बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति..... शुभकामनायें.

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    1. धन्यवाद संतोष जी!

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