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Tuesday, 17 April 2012

गलती कि गुनाह

फेस बुक पर कमेन्ट कर रही थी की कुछ पंक्तियाँ स्वतः ही बनती चली गईं.........

मेरी गलती थी कि गुनाह, जो टूट के चाहा तुझे 
एक बुत ए संग से, जो खुदा बनाया तुझे 

मैंने तो सौंप दी, डोर जीवन की, तेरे हाथों में 
तूने कठपुतली की मानिंद, ता उम्र नचाया मुझे 

बन के शमा जिसकी चाहत में, जलाया खुद को 
वीरान स्याह रातों की  , वो दे गया सौगात मुझे

कदम कदम पे चरागा किये, रौशन करने को राहें 
उसकी ही फूँक से इबदात खाने के  चिराग बुझे 




20 comments:

  1. वाह.................
    बहुत सुंदर .........
    बन के शमा जिसकी चाहत में, जलाया खुद को
    वीरान स्याह रातों की , वो दे गया सौगात मुझे

    लाजवाब.....

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  2. बन के शमा जिसकी चाहत में, जलाया खुद को
    वीरान स्याह रातों की , वो दे गया सौगात मुझे

    बहुत खूब मैम!

    सादर

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  3. वाह............

    बहुत बढ़िया...

    बन के शमा जिसकी चाहत में, जलाया खुद को
    वीरान स्याह रातों की , वो दे गया सौगात मुझे
    दर्द भरी अभिव्यक्ति...
    अनु

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  4. ek gunaah paidaa kartaa hai sailaab zindgee mein

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    1. बिलकुल सही फ़रमाया आपने राजेन्द्र जी!

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  5. वाह बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल लिखी है आपने शानदार....वक़्त मिले तो ब्लॉग पर भी आयें।

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  6. बन के शमा जिसकी चाहत में, जलाया खुद को
    वीरान स्याह रातों की , वो दे गया सौगात मुझे... waah

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  7. मेरी गलती थी कि गुनाह, जो टूट के चाहा तुझे
    एक बुत ए संग से, जो खुदा बनाया तुझे
    वाह ... बहुत खूब

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  8. अनु जी, यशवंत जी, संगीता जी, राजेन्द्र जी, इमरान जी, रश्मि जी, सदा जी .......हौंसला अफजाई के लिए आप सबका शुक्रिया!

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  9. मैंने तो सौंप दी, डोर जीवन की, तेरे हाथों में
    तूने कठपुतली की मानिंद, ता उम्र नचाया मुझे ...

    प्रेम का अंत तो ये होना ही है ... बहुत ही बढ़िया रचना है ...

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  10. सुंदर शब्दों में जज्बातोँ को उकेरा......बेहतरीन रचना

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  11. बहुत बेहतरीन....
    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।

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  12. बन के शमा जिसकी चाहत में, जलाया खुद को
    वीरान स्याह रातों की , वो दे गया सौगात मुझे

    vakai bahut sundar gazal ...badhai sweekaren Shalini ji hr sher me gahari kashish .

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    1. ख़ूबसूरत भाव, सुन्दर रचना.

      कृपया मेरी १५० वीं पोस्ट पर पधारने का कष्ट करें , अपनी राय दें , आभारी होऊंगा .

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  13. मैंने तो सौंप दी, डोर जीवन की, तेरे हाथों में
    तूने कठपुतली की मानिंद, ता उम्र नचाया मुझे

    बहुत खूब ... ये तो अदा है उनकी ...
    लाजवाब शेर है ..

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