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Friday, 13 April 2012




फिर कभी पास बैठेंगे, सुनाएँगे हाल ए दिल 
कुछ अपने दिल  की कहेंगे, कुछ तुम्हारी सुनेंगे
कि भरा हुआ तो है दिल में ग़ुबार मगर
मिजाज़ अपना आज कुछ ठीक नहीं है


खुशग़वार मौसम पे रंगीन रुबाइयाँ कहेंगे
खिलते फूलों पे शबनम से तराना लिखेंगे
कि ज़रा बदल लेने तो दो इस मौसम को
मिजाज़ रुत का अभी , कुछ ठीक नहीं है


नज़दीकियों से ज़माने को होता है मुहब्बत का शुबह
बात करते हो पास आके तुम बड़े नाज़ औ अंदाज़ से
कि ग़लत न समझ बैठे कहीं संगदिल ये जहाँ
पाक़नीयत हो तुम मगर, निगाह ए जहाँ ठीक नहीं है


हर किसी से मिलते हो तुम तो, बड़ी फ़राक दिली से
दो पल में बना लेते हो हरेक को हमराज़ अपना
कि इस क़दर अपनाहत का भी ज़माना नहीं ए दोस्त
शातिरों की दुनिया में, भोलापन इतना भी ठीक नहीं है





22 comments:

  1. नज़दीकियों से ज़माने को होता है मुहब्बत का शुबह
    बात करते हो पास आके तुम बड़े नाज़ औ अंदाज़ से

    बहुत खूब मैम!

    सादर

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    1. धन्यवाद यशवंत जी!

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  2. कि इस क़दर अपनाहत का भी ज़माना नहीं ए दोस्त
    शातिरों की दुनिया में, भोलापन इतना भी ठीक नहीं है
    bahut khoob, badhai

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    1. धन्यवाद शुक्ल जी !

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  3. कि इस क़दर अपनाहत का भी ज़माना नहीं ए दोस्त
    शातिरों की दुनिया में, भोलापन इतना भी ठीक नहीं है
    बहुत सुंदर.................

    बहुत अच्छी रचना...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद!

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  4. नज़दीकियों से ज़माने को होता है मुहब्बत का शुबह
    बात करते हो पास आके तुम बड़े नाज़ औ अंदाज़ से.....

    थोड़ी दूरियाँ बना के रखें.....
    सुंदर...

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  5. खुशग़वार मौसम पे रंगीन रुबाइयाँ कहेंगे
    खिलते फूलों पे शबनम से तराना लिखेंगे
    .....कोमल भावनाएँ शब्दों से बाहर झांकती हुई सुन्दर कविता, भाव भरे शब्दों के साथ !!!

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  6. "खुशग़वार मौसम पे रंगीन रुबाइयाँ कहेंगे
    खिलते फूलों पे शबनम से तराना लिखेंगे
    कि ज़रा बदल लेने तो दो इस मौसम को
    मिजाज़ रुत का अभी , कुछ ठीक नहीं है"
    बहुत खूबसूरत !

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  7. आज 15/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर (सुनीता शानू जी की प्रस्तुति में) लिंक की गया हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  8. Replies
    1. धन्यवाद संगीता जी!

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  9. कि ज़रा बदल लेने तो दो इस मौसम को
    मिजाज़ रुत का अभी , कुछ ठीक नहीं है"
    बहुत सुंदर रचना...

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  10. हर किसी से मिलते हो तुम तो, बड़ी फ़राक दिली से
    दो पल में बना लेते हो हरेक को हमराज़ अपना
    कि इस क़दर अपनाहत का भी ज़माना नहीं ए दोस्त
    शातिरों की दुनिया में, भोलापन इतना भी ठीक नहीं है


    बहुत ही खुबसूरत है ये शेर....सुभानाल्लाह ।

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    1. बहुत बहुत शुक्रिया इमरान जी!

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  11. बहुत सुन्दर...पर अंतिम ४ पंक्तियाँ कमाल की है.

    शुभकामनायें!!

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  12. बहुत प्यारी ग़ज़ल ...
    एक एक पंक्ति कमाल की है

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