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Wednesday, 22 February 2012

मुकम्मल हयात

एक मुकम्मल हयात की तलाश में, 
ताउम्र बेचैन, भटकते से रहे 
दो जहाँ पाने की फ़िराक में, 
न यहाँ के और न उस जहाँ के रहे 


कभी इस कमी का रोना, 
कभी उस कमी की खलिश 
एक खुशी का सिर पकड़ते, 
तो दूजे को छोड़ते हम रहे 


क्या मिला, कितना मिला, 
इसी हिसाब में खोया चैन औ क़रार
खुदा  की नियामतों  पे  शक, 
 काफ़िर  से  हम  करते  रहे 







29 comments:

  1. वाह क्या बात है बहुत सुंदर रचना. पढ़ कर एक नहीं उर्जा सी आ गई मन में !
    लाजवाब!!!

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद..... संजय जी!

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  2. एक खुशी का सिर पकड़ते,
    तो दूजे को छोड़ते हम रहे
    ..............आपकी यह कविता प्रेम की उद्दात भावनाओं को प्रकट करती है.... बेहतरीन प्रस्तुति।

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  3. सच, असंतोष में जो मिला वह भी खो दिया...!
    सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  4. क्या मिला, कितना मिला,
    इसी हिसाब में खोया चैन औ क़रार
    खुदा की नियामतों पे शक,
    काफ़िर से हम करते रहे

    ....बिलकुल सच...बहुत सुंदर

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  5. धन्यवाद कैलाश जी,अनुपमा जी एवं संजय जी ........ हार्दिक आभार !

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  6. बहुत बहुत सुन्दर...

    खुदा की नियामतों पे शक,
    काफ़िर से हम करते रहे ...

    बहुत खूब...

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  7. अल्टीमेट... बेहद खुबसूरत रचना.

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    1. धन्यवाद लोकेन्द्र जी,

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  8. यही चलता है सिलसिला ... पाना खोना ... खोते जाना

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    1. बस इसी पाने-खोने का हिसाब लगाने के चक्कर मे जिन्दगी क आनन्द खत्म हो जात है ..... धन्यवाद रश्मि जी !

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  9. वाह क्या बात है ...
    कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता ... तो इस हयात की तो बात ही क्या ...

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    1. पर चहत तो सभी को होती है इस मुकम्मल जहां की.... धन्यवाद दिगंबर जी,

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  10. बेहतरीन रचना।


    सादर

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  11. क्या मिला, कितना मिला,
    इसी हिसाब में खोया चैन औ क़रार
    खुदा की नियामतों पे शक,
    काफ़िर से हम करते रहे

    खुबसूरत और शानदार आखिरी वाली ये पंक्तियाँ सबसे बढ़िया.......फुर्सत मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें।

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    1. धन्यवाद, इमरान जी! आपके ब्लोग पर आपकी नयी रचना बहुत अच्छी लगी ....

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  12. "खुदा की नियामतों पे शक,
    काफ़िर से हम करते रहे "
    क्या बात कही है शालिनी मैंम ! बहुत सुंदर

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    1. धन्यवाद सुशीला जी!

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    1. संगीत जी, बहुत बहुत धन्यवाद!

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  14. धन्यवाद, यशवन्त जी!

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  15. बहूत हि सुंदर,,
    सुंदर भाव अभिव्यक्ती...

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  16. Replies
    1. धन्यवाद भारत भूषण जी !

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  17. कभी किसीको मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता
    कहीं ज़मीन तो कहीं आसमान नहीं मिलता ... सुन्दर अभिव्यक्ति !!!

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  18. क्या मिला, कितना मिला,
    इसी हिसाब में खोया चैन औ क़रार
    खुदा की नियामतों पे शक,
    काफ़िर से हम करते रहे

    WAH GAJAB KA LIKHA HAI APNE ....BADHAI SHALINI JI.

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद नवीन जी!

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