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Monday, 20 February 2012

कितने चेहरे

कितने चेहरे  ........
                              
एक पर एक 
मुखौटा चढाए
कितने ही चेहरों के पीछे 
खुद को छिपाए 
डर के भागते फिरते हैं 
कहीं अपनी खुद से 
मुलाकात न हो जाए 


हर मौके के लिए                         
एक नया  चेहरा तैयार रखते 
कभी ताजातरीन
कभी ग़मगीन दिखते
क्या भूल नहीं गए हम
वाकई 
क्या महसूस हम करते ?


कभी आईने में 
अक्स असली देख अपना 
बेतरह चौंक जाते  
घड़ी दो घड़ी को तो 
खुद को भी पहचान कहाँ पाते  
फिर कोशिशे करते 
उस चेहरे पे 
नया मुलम्मा चढाने की 
असलियत खुद की 
खुद से ही छिपाने की 


दस चेहरों पे                  
अनगिनत भाव लिए 
क्या बनते नहीं जा रहे हम 
दशानन ........???





11 comments:

  1. बेहतरीन...
    खुद ही नहीं जानता आदमी... वो कि वो क्या है...
    गहन भाव लिए रचना...

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद विद्या जी .....

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  2. हर चेहरा मुखौटे से ढाका होता है ..और न जाने कितने मुखौटे चढ़ाये होता है .सुंदर अभिव्यक्ति

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    1. संगीत जी, बहुत बहुत धन्यवाद!

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  3. दस चेहरों पे
    अनगिनत भाव लिए
    क्या बनते नहीं जा रहे हम
    दशानन ........???

    आज कल इंसान की पहचान मुश्किल होती जा रही है।

    सादर

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    1. और शायद अपनी पहचान भी गुम होती जा रही है...... धन्यवाद, यशवंत जी !

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  4. एक चेहरे पे कई चेहरे चढ़ा लेते हैं लोग......तस्वीरे भी बहुत अच्छी लगी ।

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    1. धन्यवाद इमरान जी ....

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  5. धन्यवाद संजय जी !

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  6. दस चेहरों पे
    अनगिनत भाव लिए
    क्या बनते नहीं जा रहे हम
    दशानन ........???

    SUNDAR VICHARON KA SANYOJAN ...

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    1. आदमी अपनी स्वयं की पहचान से वाकिफ नही है|इतने चेहरे लेकर घूम रहा है कि स्वयं की असली पहचान क्या है भूल चूका है |
      दिल को छूने वाली सुन्दर अभिव्यक्ति!

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