न शेर ओ शायरी की अक्ल ,
न गीत ओ गज़ल की समझ .
न ही कविता रचने का शऊर,
न नज़्म गढ़ पाने का माद्दा .
बस कुछ शब्द टूटे फूटे से,
कुछ भाव अनबूझे-अनकहे से.
जुबां पर लाने की जुर्रत में ,
ख्वाब कितने ही फिसल छूटे.
कहीं कल्पना की अधूरी - सी उड़ान
कहीं असलियत का अधसिला जामा
किसे पकडें, किसे छोड़े की कशमकश में
हर बार अधूरी रह जाती मेरी.... 'अनुभूति'
कविता रचना मुझे कभी न आता कभी कभी रच जाती कविता........
ReplyDeleteआपको अभिव्यक्ति की बाकायदा समझ है:-)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर..
अनुभूति अधूरी नहीं होती , अनकहा शेष रहता है
ReplyDeleteधन्यवाद पश्यन्ती जी, विद्या जी, रश्मि जी ....हार्दिक आभार !
ReplyDeleteअपने अज्ञान को स्वीकार कर लेने से ही हम पूर्णतया की और बढ़ जाते हैं.....बहुत सुन्दर है पोस्ट|
ReplyDeleteजी हाँ इमरान जी , अपने अज्ञान को स्वीकार करने में मुझे कोई झिझक नहीं है ....... तारीफ के लिए शुक्रिया!
Deleteजी अपने तो बहुत सुन्दर लिखा है ...
ReplyDeleteअच्छा लिखती है आप और लिखती रहिये ...