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Wednesday, 26 September 2018

मावस रात भई उजियारी


मत्तगयन्द सवैया 
सोवत ही सबके उठके चल दीं, धरती पग दाब धरा री|
नैन कहीं पर,ध्यान कहीं, उलझे पग, कैसन छाई खुमारी|
आँचल से मुख ढाँप चलीं, पहचान न जाय कोई खटका री|
पूनम चाँद चले  घुँघटा धर, मावस रात भई उजियारी |
शालिनी रस्तौगी 

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