अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
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Tuesday, 25 September 2018
बिछुआ छनके
पाँव बढ़े बिछुआ छनके छन, झाँझरिया उत शोर मचावे|
कंगन-चूरि करें चुगली, नथ झूमि हिले सब राज बतावे|
सास खड़ी अंगना, ननदी पहरा, उत मोहन टेर लगावे|
सोच-विचारि पड़ी अब क्या, मिलने की उनसे विधि-युक्ति लडावे|
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
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