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Wednesday, 20 June 2018

‘दृष्टि’ महिला लघुकथाकार अंक

आदरणीय श्री अशोक जैन एवं प्रसिद्ध लघुकथाकार कांता राय जी के कुशल संपादन से सजी, लघुकथा को समर्पित अर्द्धवार्षिकी पत्रिका ‘दृष्टि’ का महिला लघुकथाकार अंक मेरे हाथों में है| इसके लिए मंजू जैन मैम का हृदय से आभार| ‘दृष्टि’ पत्रिका कि सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि यह न केवल लघुकथाकारों को एक अच्छा मंच उपलब्ध करवाती है वरन् लघुकथा की बारीकियों को बड़ी कुशलता से समझाती है| सम्पादकीय पढ़ते ही आपको इस पत्रिका का गुरुतर उद्देश्य समझ आ जाता है जहाँ लघुकथा के अस्तित्व को बचाकर इस विधा को नया जीवन व नया कलेवर देने के प्रयास स्पष्टतः समझ आते हैं| अंक के प्रारंभ में भी संपादक श्री अशोक जैन जी द्वारा लघुकथाकारों को अच्छा पाठक बनने का सुझाव इस दिशा में उठाया गया एक मजबूत कदम है|
महिला लघुकथाकार विशेषांक का अतिथि संपादन भी बेहतरीन लघुकथाकार, संपादिका एवं ‘लघुकथा के परिंदे’ नामक समूह की संचालिका कांता राय जी के दक्ष हाथों में सौंपना इस अंक के लिये सोने पर सुहागा साबित हुआ| कांता राय जी ने जहाँ एक ओर महिलाओं को केवल शौकिया लेखन से ऊपर उठकर एक जिम्मेदाराना प्रयास के लिए प्रेरित किया वहीं नारी मन में छिपी अकुलाहट व सृजनशीलता के निकास का पथ भी प्रदर्शित किया|
‘दृष्टि का सम्पादकीय एवं डॉ. अशोक भाटिया द्वारा लिखित आलेख ‘हिंदी में लेखिकाओं का लघुकथा संसार’ पढना स्वयं में एक शोध के सामान है जहाँ लघुकथा संसार में छिपी संवेदनाओं और संभावनाओं को बेहद खूबसूरती के साथ उकेरा गया है| लघुकथा कि प्रथम शोधार्थी डॉ. शकुंतला किरण जी का साक्षात्कार लघुकथा की आत्मा को शब्दों में ढालकर इतनी सहजता से प्रस्तुत करता है कि कोई संदेह शेष ही नहीं रह जाता| विशिष्ट लघुकथाकार के रूप में चित्रा मुद्गल जी कि पांच रचनाएँ बहुत प्रभावी हैं| सातवें व आठवें दशक की पांच लघुकथाकारों की रचनाएँ लघुकथा के क्रमिक विकास का ब्यौरा देती हैं|
१०० महिला लघुकथाकारों की रचनाओं से सजा ‘दृष्टि’ का यह विशेषांक नारी मन के सभी कोनलों का स्पर्श करता है | नारी मन की अकुलाहट, आत्मनिर्भरता, स्वतंत्रता की चाहत, ममता, प्रेम व स्नेह जैसी संवेदनाओं से जुड़ी रचनाएँ हैं तो सामाजिक सरोकरों से जुड़ी, भेदभाव की परिपाटी को सिरे से ख़ारिज करने का साहस रखने वाली पितृसत्तात्मक समाज के विरोध में मुखर होती रचनाएँ भी सम्मिलित हैं| जीवन के अनेक रंगों के पुष्पों को स्वयं में समेटे दृष्टि का यह अंक संग्रहणीय है| सभी लेखिकाओं, एवं संपादकों को हृदयतल से साधुवाद|

3 comments:

  1. पठन-पाठन की मेरी आदत के तहत इंटरनेट पर ढूंढ ढूंढ कर पढ़ने हेतु साहित्यिक सामग्रियों की तलाश के तहत आज आपके ब्लॉग पर मेरा आना हुआ और आपकी रचनाओं का आस्वादन करते हुए हठात इस समीक्षा पर नजर पड़ी तो चौंक पड़ी| सार्थक साहित्यिक कार्य तपस्वी की साधना के सामान है जिसमे लेखक निरंतर एकात्म भाव में लीं रहता है और स्वयं में स्वयं को पोषित करता रहता है| इस समीक्षा से मैं अभिभूत हुई हूँ| आपका ह्रदय से आभार प्रकट करती हूँ|

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  2. पठन-पाठन की मेरी आदत के तहत इंटरनेट पर ढूंढ ढूंढ कर पढ़ने हेतु साहित्यिक सामग्रियों की तलाश के तहत आज आपके ब्लॉग पर मेरा आना हुआ और आपकी रचनाओं का आस्वादन करते हुए हठात इस समीक्षा पर नजर पड़ी तो चौंक पड़ी| सार्थक साहित्यिक कार्य तपस्वी की साधना के सामान है जिसमे लेखक निरंतर एकात्म भाव में लीं रहता है और स्वयं में स्वयं को पोषित करता रहता है| इस समीक्षा से मैं अभिभूत हुई हूँ| आपका ह्रदय से आभार प्रकट करती हूँ|

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