Pages

Wednesday 2 June 2021

सम्पूर्णता और अपूर्णता

संपूर्णता का अभिमान लिखूँ, अपूर्ण रही जो उड़ान लिखूँ।

व्यक्त कभी अव्यक्त रही  , पीड़ा वह अनजान लिखूँ।

वे क्षण जो हमने संग बाँटे, वे क्षण जो किस्मत से छाँटे।
वे क्षण जो तेरे बिन गुज़रे, खटके मन में बनकर काँटे।
मिलकर भी न मिल पाने का, टूटा जो अरमान लिखूँ। 
व्यक्त कभी अव्यक्त रही  , पीड़ा वह अनजान लिखूँ।

सुख की मदिरा भरी नहीं, न रिस पाए दुःख के छाले|
न छलके ना ही रिक्त हुए, नैनों के अध-पूरित  प्याले |
अपूर्ण मिलन की तड़पन या सम्पूर्ण विरह की आन लिखूँ|
व्यक्त कभी अव्यक्त रही  , पीड़ा वह अनजान लिखूँ।

देह बंध जो बँध न पाया, अनाम रहा निराकार रहा ,
आत्मा के उजले अम्बर को, अपने रंग रँग साकार हुआ ,
निस्सीम गगन तक जो पहुँचा, प्रेम का वह प्रतिमान लिखूँ
व्यक्त कभी अव्यक्त रही  , पीड़ा वह अनजान लिखूँ।

~~~~~~~~~~~~
shalini rastogi


No comments:

Post a Comment

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.