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Thursday, 3 August 2017

कोयला है, जितना पौंछो, काला ही नज़र आएगा।

आइना थोड़े ही है जो पौंछ कर चमक जाएगा।
कोयला है, जितना पौंछो, काला ही नज़र आएगा।

है बसी रग-रग में हरकत, फितरती है उसका मिजाज़।
तुमने क्या सोचा कि समझाने से वो बदल जाएगा।

बाँध तूफां को अपने पालों में चलता है जो।
वो सफ़ीना आँधियों के रुख से क्या दहल जाएगा।

गर्दिशों ने है सँवारा, ठोकरों ने है सँभाला ।
काँच समझा है क्या उसे, जो छूते ही बिखर जाएगा।

एक दूजे की टाँग को जकड़े खड़े हैं लोग देखो।
देखते हैं कौन, किससे, कैसे अब आगे निकल पाएगा।
~~~~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी

8 comments:

  1. बाँध तूफां को अपने पालों में चलता है जो।
    वो सफ़ीना आँधियों के रुख से क्या दहल जाएगा।
    प्रेरणात्मक और उत्साहवर्धक सुंदर पंक्तियाँ। साधुवाद।

    आप मेरे बलाग purushottamjeevankalash.blogspot.com पर सादर आमंत्रित हैं।

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    1. पुरुषोत्तम जी, हार्दिक धन्यवाद

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  2. बुहत खूब ... गहरे शेर लिए अच्छी ग़ज़ल ...

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    1. हार्दिक आभार दिगंबर जी

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  3. आज का यथार्थ .सब एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में हैं

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    1. शुक्रिया संगीता जी

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  4. बहुत खूब

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