अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
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Sunday, 11 June 2017
आवरण
आवरण ढूँढ़ते हैं छिपाने को आदिम रूप हर चीज़ का डरते हैं कहीं प्रकट न हों जाएँ कामनाएँ अपने आदिम रूप में पहना देते हैं उन्हें सुन्दर, आकर्षक, दिखावटी शब्दों का भारी-भरकम जामा| क्योंकि देह हो या विचार किसी भी हाल नग्नता स्वीकार्य नहीं ...... समाज को चाहिए आवरण
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
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