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Friday, 12 May 2017

कुछ न बोल, चुप रह, ए जुबान अभी।

कुछ न बोल, चुप रह, ए जुबान अभी।
दिल ये कर रहा है कुछ बयान अभी।
फिर निशाने पे है दिल किसी का देखो,
है खिंची हुई नज़र की कमान अभी।
शहरे याद में शब भर भटकता फिरा
है दिमाग के पैरों में थकान अभी ।
फिर सँवरने में वख्त लग जाएगा,
गुज़रा है यहाँ से इक तूफ़ान अभी।
चल रहा फरिश्तों औ शैताँ में जुआ,
दाँव पर है इन्सां का ईमान अभी।
क्या खरीदेंगे, सब कुछ तो बिक रहा,
है सजी हुई रिश्तों की दुकान अभी
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शालिनी रस्तौगी

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