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Friday, 27 February 2015

मैं देह , तुम प्राण

मैं देह , तुम प्राण
अनुभव होता है आजकल 
देह का प्राण से विलग होना 
बड़ी ही जटिल है ..  यह प्रक्रिया
आखिर रोम-रोम हम बंधे  हैं साथ 
हर बंध टूटने का अहसास 
तड़पा देता है 
कर देता विह्वल 
हर साँस देह में अटक कर 
कुछ और रुक जाना चाहे है 
थाम लेना चाहती है देह 
प्राणों के संसर्ग को 
कुछ और पल .... कुछ और क्षण 
जैसे तुम्हारे कदमों से बंधे हैं 
मेरी साँसों के धागे 
दूर जाता तुम्हारा हर कदम 
क्षीण कर जाता जीवन की आस 
आखिर .. मैं देह , तुम प्राण !


14 comments:

  1. प्रेम में विरह का दुःख ऐसे ही विह्वल कर जाता है...भावपूर्ण !

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    1. धन्यवाद अनीता जी !

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    2. धन्यवाद अनीता जी !

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  2. वाह !!
    बहुत सुन्दर !!

    अनुलता

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  3. देह से प्राण विलग नहीं होते ... कुछ पल अलग होना पुनः मिलन की आकर्षित करता है ...

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    1. सहमत हूँ आपसे दिगंबर जी !!

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  4. बहुत सुन्दर.... दिल को प्यार से अब भी सहला जाता है कोई… तुम्हारी सांसो का अहसास शायद ……

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    1. धन्यवाद अनिल कुमार जी !!!

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  5. बहुत सुन्दर।

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    1. शुक्रिया सुरेंदर पाल जी

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  6. देह से अलग प्राण का कहाँ जाएँगे
    आपको सपरिवार होली की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ .....!!
    http://savanxxx.blogspot.in

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    1. हार्दिक आभार सावन कुमार जी !!

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