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Tuesday, 1 July 2014

भंवरे, परवाने, चकोर सब इश्क़-मारे आ गए ( ग़ज़ल )

भंवरे, परवाने, चकोर सब इश्क़-मारे आ गए,
दिलजले महफ़िल में तेरी, आज सारे आ गए.

शोर, सरगोशी, ठहाके, रक्स औ मै हर तरफ,
ज़िक्र जब तेरा छिड़ा हम, बिन पुकारे आ गए.

दीप, शम्मा, फूल, जुगनू से कसर बाक़ी रही,
तो तेरी महफ़िल सजाने चाँद-तारे आ गए.

फूल, मखमल मोतियों से राह उनकी सज गई,
अपनी राहों में फ़कत जलते शरारे आ गए .

तंज तानों औ सज़ा से साफ़ वो तो बच गया
जितने भी इलज़ाम थे सब सर हमारे आ गए .

शोखियाँ, अंदाज, चितवन से कहाँ वाकिफ़ थीं ये
आज आँखों को तेरी कितने इशारे आ गए .

7 comments:

  1. वाह वाह वाह ...... एक रवायती ग़ज़ल की तमाम खसूसियत समेटे .....इश्क, परवाना, शमा ....मुक़म्मल ग़ज़ल .....दाद कबूल करें |

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  2. लाजवाब शेर हैं इस ग़ज़ल के ... बहुत उम्दा ...

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