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Tuesday, 18 February 2014

प्रेम पगी रस में लिपटी, हर बात (सवैया - मत्तगयन्द)

सवैया (मत्तगयन्द)

प्रेम पगी रस में लिपटी, हर बात पिया सुन लागत तेरी|

लाज हया बिसराय सबै, फिरती अब काठ भई मति मेरी |

मोहन मोह लियो जब जी, तन भी गह ले अब कैसन देरी|

जीवन जाय अकारथ ये सगरा तुमने अँखियाँ जदि फेरी ||

9 comments:


  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन क्या होता है काली बिल्ली के रास्ता काटने का मतलब - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  2. सात भगण और दो गुरु । मत्तगयन्द छन्द । शालिनी जी , यह आपके द्वारा रचित है --यह पूछना सभ्यता के विरुद्ध है लेकिन आज वार्णिक छन्द , वह भी इतना दोषरहित और सरस कि लगता ही नही कि यह किसी रीतिकालीन कवि का सवैया नही है । बहुत ही सुन्दर ।

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    1. गिरिजा जी , सर्वप्रथम तो आपकी अनमोल टिपण्णी के लिए आभार, दूसरे यह , की अभी सवैया छंद सीखने की ही कोशिश कर रही हूँ, यदि छंद दोषमुक्त है , यह मेरे लिए बहुत प्रसन्नता का विषय है .. आप जैसे सुधिजन की टिप्पणियां आगे सीखने के लिए प्रेरित करती हैं .. धन्यवाद!

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  3. बेहद उम्दा रचना अनुपम भाव संयोजन के साथ

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