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Tuesday, 24 December 2013

एक ज्वलंत प्रश्न ....


हे पितृसत्तात्मक समाज!
देना होगा तुझे 
उत्तर यह आज.
लाने को अस्तित्व संतान का 
है उत्तरदायी यदि पिता 
और माध्यम है माँ 
क्यों चुराता है मुँह उत्तरदायी 
अपने उत्तरदायित्व से 
क्यों पालन संतान का बन जाता कर्त्तव्य 
मात्र माध्यम का 
क्यों सारे अधिकारों को हाथ में ले 
लगाता जाता कर्त्तव्यों का ढेर 
स्त्री के सर 
क्यों पह अधिकारी है सदा 
प्रताड़ना, वंचना, उपेक्षा की ही 
शारीरिक प्रबलता के भ्रम  में 
हर बार मिथ्या अहम् में
जमाता है धौंस,
चलाता है जोर 
कभी नारी मन,कभी उसकी आत्मा  
कभी उसका शरीर 
कर डालता क्षत - विक्षत 
क्यों मातृसत्ता सतत 
विवश, लाचार, संतप्त
किस उधार का 
वह तिल-तिल जल 
चुका रही है ब्याज 
देना होगा तुझे उत्तर आज 
हे पितृसत्तात्मक समाज !

7 comments:

  1. बहुत मुश्किल है उत्तर देना अभी
    आ रहा है समय आगे को
    मिलेगा जवाब शायद कभी !

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  2. मार्मिक प्रस्तुति.....

    सादर
    अनु

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  3. सुंदर,मन के भावों की उम्दा प्रस्तुति...!

    Recent post -: सूनापन कितना खलता है.

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  4. परस्थितियां बदल रही है। इन स्थितियों का जवाब और उपाय समय है और जल्दि परिवर्तन का दौर आएगा। सालों की, युगों की गलतियां दुरुस्त होने समय लगता है, पर आशा जल्द से जल्द होगा।

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  5. वाह ! बहुत ही गहन और सुन्दर |

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  6. जटिल प्रश्न,मुशिकल जबाब ...!

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  7. ये प्रश्न पूछ सकें यह साहस भी धीरे धीरे छिन लिया गया. अब बस मन में ही यह प्रश्न जिसका कोई उत्तर नहीं. बहुत अच्छी रचना के लिए बधाई.

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