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Wednesday, 11 September 2013

शब्द तेरे ...


हर शब्द तेरा 
मन ही मन मैं 
गुनती रही 
बार-बार दोहरा के उसे 
खुद ही सुनती रही 
मुँह में उसे घुमाती रही 
कुछ खट्टी मीठी गोली की तरह
घुल-सी गई मिठास 
अंतस में मेरे .....
तेरा कहा हर शब्द 
कभी  साकार बन 
तैरता रहा आँखों के आगे 
नदी की लहर पर 
डूबता- उतरता रहा 
कभी पंख-सा उड़ता रहा 
हवा के परों पर 
हर बार नया रूप धर 
सामने आ खड़ा हुआ 
भरमाने को मुझे 
........ हाँ ..... 
बस यही तो किया अब तक 
शब्दों ने तेरे 
कैसा मोहक जाल फैलाया 
भ्रमित कर मुझे 
बेतरह उलझाया 
तृषित चातक की प्यास बन
मरुस्थल में जल दिखला 
मृग सा मुझे अपने पीछे 
दौड़ाता ही रहा है 
हर शब्द तेरा  



9 comments:

  1. बहुत खूब, सुंदर अभिव्यक्ति,,शालिनी जी,,,

    RECENT POST : समझ में आया बापू .

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  2. अत्यन्त हर्ष के साथ सूचित कर रही हूँ कि
    आपकी इस बेहतरीन रचना की चर्चा शुक्रवार 13-09-2013 के .....महामंत्र क्रमांक तीन - इसे 'माइक्रो कविता' के नाम से जानाःचर्चा मंच 1368 ....शुक्रवारीय अंक.... पर भी होगी!
    सादर...!

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  3. सुंदर अतिसुंदर...
    आप सब की कविताएं कविता मंच पर आमंत्रित है।
    हम आज भूल रहे हैं अपनी संस्कृति सभ्यता व अपना गौरवमयी इतिहास आप ही लिखिये हमारा अतीत के माध्यम से। ध्यान रहे रचना में किसी धर्म पर कटाक्ष नही होना चाहिये।
    इस के लिये आप को मात्रkuldeepsingpinku@gmail.com पर मिल भेजकर निमंत्रण लिंक प्राप्त करना है।



    मन का मंथन [मेरे विचारों का दर्पण]

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.. आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी पोस्ट हिंदी ब्लॉग समूह में सामिल की गयी और आप की इस प्रविष्टि की चर्चा कल - शुक्रवार - 13/09/2013 को
    आज मुझसे मिल गले इंसानियत रोने लगी - हिंदी ब्लॉग समूह चर्चा-अंकः17 पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया आप भी पधारें, सादर .... Darshan jangra





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  5. बहुत ही खूबसूरत एवँ आत्मीय सी रचना ! शुभकामनायें शालिनी जी !

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  6. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी यह रचना आज सोमवारीय चर्चा(http://hindibloggerscaupala.blogspot.in/) में शामिल की गयी है, आभार।

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