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Thursday, 29 November 2012

बेतरतीब हयात


बेतरतीब है, बिखरी सी पड़ी है हयात,
चलो आज इसको करीने से सजाया जाए.

घर की हरेक चीज़, हर कोने में फैली हुई हैं यादें तेरी,
दिल की दीवारों पे इन्हें , सिलसिलाबार सजाया जाए. 

जिस्म से रूह तलक, गोशे-गोशे पर छपी हैं बातें, 
हर्फ-ब-हर्फ़  चुन-चुन के एक अफसाना बनाया जाए. 

वो तेरी हर बात जो, दिल को नाग़वार गुज़री, 
उन्हीं बातों से आज, अपने शेरों को सजाया जाए .

कहाँ तक संजोते रहें ग़मों को, जो बख्शे तूने ,
उन ग़मों को आज सीने में, अपने दफनाया जाए. 

बस्ल-ए-तन्हाई में है कौन, किससे गुफ्तगू करलें.
तन्हाइयों को भी आज, शोर सन्नाटे का सुनाया जाए.

रू-ब-रू आ, कि आँख मुंदने तक तेरा दीदार करें,
नज़र की तिश्नगी को तेरे दीदार से बुझाया जाए.

थम-सी गई है रफ़्तार-ए-जिंदगी, कि मौत दूर खड़ी, 
पैगाम जल्द आने का ,कासिद के हाथों भिजवाया जाए.

मुलाक़ात जब भी हो खुद से, कोई गैर जान पड़ता है,
गैरों से पेशतर खुद को,  अपना दोस्त बनाया जाए .

कुछ कमी सी है फिज़ा में, कि राग-ए-गुल फीके हैं ,
खून-ए-जिगर देके फूलों को रंगीन बनाया जाए .






27 comments:

  1. वाह शालिनीजी ....बहुत ही सुन्दर ....जैसे हर हर्फ़ तड़पकर भीतर से निकला है .....

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    1. दिल की तड़प है, लफ़्ज़ों में ढल जाती है
      बगरना हर घड़ी, यही दिल को तडपती है
      सरस जी ... बहुत बहुत धन्यवाद !

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    2. लफ़्ज़ों में ढल कर ही तड़प बाहर आती है,
      लफ़्ज़ों में ही हाल-ए-दिल बयाँ कर जाती है |
      लफ़्ज़ों में बयाँ करने के इस तरीके को,
      हर लब से कोई न कोई कहानी फना पाती है |

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  2. वाह क्या कहने ....गजब की गज़ल।
    मेरी नयी पोस्ट पर आपका स्वागत है
    http://rohitasghorela.blogspot.com/2012/11/3.html

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  3. वाह शालिनी जी क्या कहना उम्दा माशाल्लाह गज़ब की ग़ज़ल है

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  4. हर्फ़ से हर्फ़ मिलाता रहा ,नज्म मेरी बनती गयी ,की तर्ज़ पर आपने अपने उर्दू गुलदस्ते के फूलों को एक एक करके सजाया ,और सजाते सजाते एक खुबसूरत नज्म बन गयी। मैंने तो आपसे पहले भी कहा था की मेमोरी अटेच रखें।ताकि सब सेव होता रहे।

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    1. धन्यवाद आमिर जी... आपकी सलाह के लिए धन्यवाद!

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  5. वाह ... बेहतरीन

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  6. जिस्म से रूह तलक, गोशे-गोशे पर छपी हैं बातें,
    हर्फ-ब-हर्फ़ चुन-चुन के एक अफसाना बनाया जाए.

    वो तेरी हर बात जो, दिल को नाग़वार गुज़री,
    उन्हीं बातों से आज, अपने शेरों को सजाया जाए .


    लाजवाब गजल

    सादर

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  7. बेहतरीन ग़ज़ल शालिनी जी, बधाई!

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  8. बेहतरीन ग़ज़ल शालिनी जी, बधाई!

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  9. वाह बहुत ही खुबसूरत......उर्दू के लफ़्ज़ों का सुन्दर प्रयोग ।

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    1. धन्यवाद इमरान जी...ज़र्रनावाजी है आपकी ....

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  10. कल 02/12/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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    1. मुलाक़ात जब भी हो खुद से ,कोई गैर जान पड़ता है ,

      गैरों से पेशतर खुद को ,अपना दोस्त बनाया जाए .

      बढ़िया शैर है शालिनीजी . बशीर बद्र साहब की ये पंक्तियाँ याद आ गईं .


      घर से मस्जिद है बहुत दूर चलो यूं कर लें ,

      किसी रोते हुए बच्चे को हंसाया जाए .

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  11. गैरों से पेश्त रखुद को अपना दोस्त बनाया जाए ----
    बहुत बेहतरीन रचना |
    आशा

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  13. बहुत ही बेहतरीन गजल है...
    बहुत ही बढ़ियाँ...
    :-)

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  14. रु ब रु आ कि आँख मुदने तक तेरा दीदार करें ।
    नजर की तिश्नगी को तेरे दीदार से बुझाया जाए ।।

    शालिनी जी वाकई आप ने तो बहुत ही खूबसूरत गजल हम सब के सामने परोस दी है । तहे दिल से शुक्रिया ।

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  15. वो तेरी बात जो सबको नागवार गुज़री ...

    बहुत ही लाजवाब शेर है इस गज़ल का ... दिल को छूता हुवा ...

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