Pages

Sunday, 18 November 2012

हम वर्तमान में कब जीते हैं?



हम वर्तमान में कब जीते हैं?
वर्तमान, 
जो है नित्य  
अनादि और अनंत,
उस वर्तमान को त्यज,
सदा दौड़ते  रहते, 
अतीत की परछाइयों के पीछे 
या 
भावी परिकल्पनाओं में खोए
विमुख 
अपने आज से 

यादें अतीत की 
घेरे रहती 
चहुँ ओर .
बार-बार धकेल देतीं 
भूत के उस 
अंतहीन कुएँ में 
जिसका नहीं 
कोई ओर-छोर 
और ........
जैसे-तैसे 
खींच यदि 
वापस भी लाएँ
खुद को हम 
तो भविष्य 
सुनहरे सपनों के 
बुनकर जाल 
न जाने कितनी
मृगतृष्णाओं में उलझा
भटकने को करता
विवश

अतीत के अन्धकार में 
तो कभी 
भविष्य के विचार में 
भरमाते हम 
खो देते हस्तगत 
वर्तमान के 
मोती अनमोल 
कुछ अद्भुत पल 
खट्टे-मीठे से
कुछ प्यार भरे
सुकून के क्षण  

और बदले में 
हाथ क्या आता?
एक मुट्ठी यादों की राख,
कुछ सूखे मुरझाये पत्ते,
कुछ हाथ न आने वाली
स्वप्नों की
रंगीन तितलियाँ  
जो पल में ओझल हो जातीं 
भरमा कर


बीते और आने वाले 
लम्हों में खोए
हम 
वर्तमान में कब जीते हैं?




21 comments:

  1. Replies
    1. धन्यवाद महेंद्र जी ..

      Delete
  2. एक गहरे विचार को प्रस्तुत करती कविता बहुत ही प्रभावित और उम्दा लगी.. एक उल्लेखनीय सौच को शलाम।

    शालिनी जी बधाई स्वीकार करें। :))

    ReplyDelete
    Replies
    1. रोहितास जी.. रचना पर ध्यान देने के लिए हार्दिक आभार!

      Delete
  3. वाह ... बहुत ही बढिया।

    ReplyDelete
  4. आज शायद पहली बार ही वर्तमान की तरफ तवज्जोह गयी है,वो भी आपकी रचना पढ़कर। अतीत और भविष्य ने कभी इस और जाने ही ना दिया। इन्ही दोनों की कशमकश में सुनहरा वर्तमान गुजर कर अतीत बनकर रह जाता है।


    मोहब्बत नामा
    मास्टर्स टेक टिप्स
    इंडियन ब्लोगर्स वर्ल्ड

    ReplyDelete
    Replies
    1. बिल्कुल सही बात कही है आमिर जी .... हम वाकई अपने वर्तमान कि उपेक्षा करते रहते हैं..
      रचना पर ध्यान देने के लिए शुक्रिया!

      Delete
  5. वाकई.....अच्छे खासे वर्तमान का भूत और भविष्य के बीच सैंडविच बना देते हैं...

    सुन्दर रचना..
    सस्नेह
    अनु

    ReplyDelete
    Replies
    1. सैंडविच .... बिल्कुल सही शब्द का इस्तेमाल किया है अनु जी!

      Delete
  6. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 20/11/12 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका स्वागत है

    ReplyDelete
    Replies
    1. धन्यवाद राजेश जी .... 'चर्चा मंच' पर शामिल होना मेरे लिए गौरव की बात है.....

      Delete
  7. वाह...वाह.......बिलकुल सही और सटीक ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. तहे दिल से शुक्रिया इमरान जी!

      Delete
  8. गहरी भावनाएं छुपाये खूबसूरत ख्यालों में सराबोर उम्दा रचना वाह।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार अरुण!

      Delete
  9. एकदम सही कहा है आपने ,,
    बहुत ही अच्छी रचना..
    :-)

    ReplyDelete
  10. बेहतरीन ख़याल. सुन्दर रचना.

    ReplyDelete
  11. बहुत सच कहा है... हम भूत और भविष्य के चिंतन में वर्तमान को भी गवां देते हैं...बहुत सुंदर रचना...

    ReplyDelete
  12. शालिनी जी , आपकी टिप्पणियाँ हमारे लेखन की आंच हैं ,एड़ और उत्प्रेरण बनती हैं .शुक्रिया . बहुत खूब डुबोया अनुभूतियों ने आपकी .आज की आवाज़ है पुकार है तंज है इन शैरों में .



    व्यतीत और अनागत की परछाइयाँ प्रेत छाया बन वर्तमान पे जहां पसरी रहतीं हैं वहां आदमी जीता कम है मरता ज्यादा है .

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.