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Monday, 17 September 2012

यकीन


यकीन है तो  कुछ उसकी, वज़ह भी होनी चाहिए
बेवजह ही तुझ पे यकीन, हम किए जाते हैं .

इंतज़ार का दीया भी, बुझ चला है अब तो
ये तो हम हैं जो बुझ- बुझ के भी जले जाते  हैं .

आस की डोर है जो टूट  के भी छूटती ही नहीं
साँस की डोर  पकड़े, मर-मर के जिए जाते हैं.

सुना था दर से तेरे कोई लौटता नहीं खाली
खाली दामन, और अश्क आँखों में लिए जाते हैं 

18 comments:

  1. वाह शालिनी जी क्या बात है उम्दा रचना, बधाई स्वीकारें

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    1. धन्यवाद अरुण!

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    2. आपका सदैव स्वागत है शालिनी जी

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  2. बढ़िया गज़ल शालिनी....
    दर्द भरे एहसास...

    अनु

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    1. दर्द होता है तो अहसास होता है कि अहसास है तो दर्द होता है..... पता नहीं... धन्यवाद अनु!

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  3. दर्दभरे अहसास व्यक्त करती
    संवेदनशील रचना...
    भावनाओं की कोमलतम अभिव्यक्ति...
    .................................

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    1. हार्दिक आभार रीना!

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    1. धन्यवाद मृदुला जी!

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  5. बहुत खूब...२ और ४ शेर सबसे अच्छा लगा ।

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  6. http://thehinduvoice.blogspot.in/
    शालीन जी आपकी कलम से शब्दों कै मोती नीकलते हैं

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    1. प्रशंसा के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करती हूँ ...धन्यवाद!

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  7. बेहतरीन लिखी हैं मैम!


    सादर

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  8. इंतज़ार का दीया भी, बुझ चला है अब तो
    ये तो हम हैं जो बुझ- बुझ के भी जले जाते हैं .

    वाह .. लाजवाब शेर .. खुद जलना पढता है इंतज़ार में अक्सर ...
    भाव पूर्ण लेखन ...

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  9. कल 20/09/2012 को आपकी यह बेहतरीन पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  10. सुंदर शब्दों में जज्बातोँ को उकेरा......बेहतरीन रचना

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