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Monday, 27 August 2012

यादें

यादें  खँगालने के लिए 
ज़रूरी नहीं
कि यादों के शांत जल में 
पत्थर ही फेंका जाए
एक छोटी सी बूँद ही 
भँवर उठा देती है
दूर - दूर तक उठती हैं तरंगें 
वर्तमान का प्रतिबिम्ब मिटा देती हैं.
और भँवर के हर वलय में 
दिखते हैं
अतीत के चलचित्र
जो एक दूसरे में मिल
और भ्रमित कर जाते हैं
और अतीत की छाप 
हम अपने वर्तमान पर लिए
कुछ और स्मृतियाँ 
सहेज उन्हें 
दिल के ड्राइंग रूम की 
दीवारों पर सजाते हैं 


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