Pages

Wednesday, 26 October 2011

अदम्य इच्छाएँ......



रह - रह कर सर उठती हैं 
अदम्य इच्छाएँ 


अचेतन से निकल 
अपने आदिम रूप में ही 
प्रकट होना चाहती हैं 
अदृश्य इच्छाएँ 


तोड़ने को हर बंधन 
रहती हैं आतुर हर पल
बिन सोचे इसका प्रतिफल 
संतुष्टि चाहती हैं 
भ्रम्य इच्छाएँ 


सुनहले ख़्वाब दिखा 
अपने जाल में उलझा 
अजनबी दुनिया में पहुंचा 
मन को भरमाना चाहती हैं 

सुरम्य इच्छाएँ 

11 comments:

  1. सुनहले ख़्वाब दिखा
    अपने जाल में उलझा
    अजनबी दुनिया में पहुंचा
    मन को भरमाना चाहती हैं
    सुरम्य इच्छाएँ


    सही कहा आपने पर इच्छाओं से पार पाना लगभग असंभव है।
    दीप पर्व की ढेर सारी शुभ कामनाएँ!
    -----
    अंधेरा या सवेरा ?

    ReplyDelete
  2. Nice

    http://www.poeticprakash.com/

    ReplyDelete
  3. इच्छाएं अनंत हैं!

    ReplyDelete
  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
  5. बेहतरीन अभिव्‍यक्ति ।

    ReplyDelete
  6. बिल्कुल सही चित्रण किया है।

    ReplyDelete
  7. आप सभी का ह्रदय से आभार व्यक्त करती हूँ ........ ये इच्छाएं ही मनुष्य को अपने वशीभूत कर उस पर अपना शासन करती हैं ...... धन्यवाद !!!

    ReplyDelete
  8. असीमित इच्छाओं के भँवर में फँसे मानव के भावों की सुंदर अभिव्यक्ति |

    ReplyDelete
  9. APKI NAYEE RACHANA KI PRATEEKSHA KE SATH APNE NAYE POST PR AMANTRIT KARATA HOON

    ReplyDelete
  10. सही चित्रण किया है सार्थक प्रस्तुति..आभार

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.