Pages

Saturday, 8 October 2011

बस यूँही



 
जो भी गुज़रा दिल की रहगुज़र से
निशान ए पा अपने छोड़ गया 
हर एक जख्म इस कदर गहरा था कि
ता उम्र  टीस बन रिसता रह गया

2 comments:

  1. हर एक जख्म इस कदर गहरा था कि
    ता उम्र टीस बन रिसता रह गया

    Vah shalini ji kya likhu itana behtareen ki shabd hi nahi hain |

    ReplyDelete
  2. दन्यवाद नवीन जी!

    ReplyDelete

आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.