अनुभूतियाँ, जज़्बात, भावनाएँ.... बहुत मुश्किल होता है इन्हें कलमबद्ध करना .. कहीं शब्द साथ छोड़ देते हैं तो कहीं एकक अनजाना भय अपनी गिरफ़्त में जकड़ लेता है .... फिर भी अपने जज्बातों को शब्द देने की एक छोटी सी कोशिश है ... 'मेरी क़लम, मेरे जज़्बात' |
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Friday, 10 June 2011
आफताब हूँ
आफताब हूँ ,ताउम्र झुलसता - जलता रहा हूँ
पर सौगात चांदनी की तुझे दिए जा रहा हूँ मैं .
रातों के सर्द साए तेरे आंचल पे बिछा,
खुद फलक से दरिया में छिपा जा रहा हूँ मैं .
जलें न मेरी रौशनी कहीं चश्म ए तर तेरे ,
सितारों की बारात सजाये जा रहा हूँ मैं.
आपकी टिप्पणी मेरे लिए अनमोल है.अगर आपको ये पोस्ट पसंद आई ,तो अपनी कीमती राय कमेन्ट बॉक्स में जरुर दें.आपके मशवरों से मुझे बेहतर से बेहतर लिखने का हौंसला मिलता है.
बहुत ही खूबसूरत ! वाह !
ReplyDeleteलाजवाब
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