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Wednesday, 1 June 2011

कैनवास


मन का कैनवास 

कभी रंगीनियों से भरा
हर तरफ खुश रंग ख्यालों से सजा 
कभी काले धूसर उदास से सायों से घिरा  
कभी हर रंग पर बेरंग
 वितान तन जाते हैं 
और कभी इन्द्रधनुष से 
शादाब गुल खिलखिलाते हैं 
कभी बीते  लम्हें निशाँ
 अपने छोड़ जाते हैं 
तो कभी आने वाले पल 
खाका अपना खींच जाते हैं 
पर यह  कैनवास 
कभी कोरा नहीं रहता 
साँसों की डोर से बंधी ये कठपुतलियां
नाचती रहती हैं 
टूटती नहीं जब तक
साँसों की डोर   

3 comments:

  1. ज़िन्दगी का कितना सही चित्र उकेरा है आपने !

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  2. मन के कैनवास पर छितरते रंग
    ग़मगीन ज़िन्दगी में भरते उमंग
    प्रवाह न हो तो उच्छ्वास कहाँ ?
    गति ना हो गर तो प्रगति कहाँ ?

    साँसों की डोर से बंधी कठपुतलियाँ तो नाचेंगी
    ज़िन्दगी है! मौत के बाद भी कदम बढ़ाएगी !
    तिनका-तिनका चुन फिर आशियाँ बनाएगी
    टूटेगी,गिरेगी मगर फिर उठ कदम बढ़ाएगी !

    चलना ही तो मानव जीवन का सार है
    मन के जीते जीत; मन के हारे हार है !

    सुशीला शिवरण

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