मन का कैनवास
कभी रंगीनियों से भरा
हर तरफ खुश रंग ख्यालों से सजा
कभी काले धूसर उदास से सायों से घिरा
कभी हर रंग पर बेरंग
वितान तन जाते हैं
और कभी इन्द्रधनुष से
शादाब गुल खिलखिलाते हैं
कभी बीते लम्हें निशाँ
अपने छोड़ जाते हैं
तो कभी आने वाले पल
खाका अपना खींच जाते हैं
पर यह कैनवास
कभी कोरा नहीं रहता
साँसों की डोर से बंधी ये कठपुतलियां
नाचती रहती हैं
टूटती नहीं जब तक
साँसों की डोर
ज़िन्दगी का कितना सही चित्र उकेरा है आपने !
ReplyDeleteमन के कैनवास पर छितरते रंग
ReplyDeleteग़मगीन ज़िन्दगी में भरते उमंग
प्रवाह न हो तो उच्छ्वास कहाँ ?
गति ना हो गर तो प्रगति कहाँ ?
साँसों की डोर से बंधी कठपुतलियाँ तो नाचेंगी
ज़िन्दगी है! मौत के बाद भी कदम बढ़ाएगी !
तिनका-तिनका चुन फिर आशियाँ बनाएगी
टूटेगी,गिरेगी मगर फिर उठ कदम बढ़ाएगी !
चलना ही तो मानव जीवन का सार है
मन के जीते जीत; मन के हारे हार है !
सुशीला शिवरण
thanx sushila.....
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