tag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post1824282434459370616..comments2023-11-05T00:19:53.278-07:00Comments on मेरी कलम मेरे जज़्बात: 'मैं' से मुक्त कहाँ हो पायीshalini rastogihttp://www.blogger.com/profile/07268565664101777300noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-16850231467237017082012-02-17T06:31:03.559-08:002012-02-17T06:31:03.559-08:00मेरे ही चरों ओर भटकते
मेरे बेबस ख्यालात परिंदे
परक...मेरे ही चरों ओर भटकते<br />मेरे बेबस ख्यालात परिंदे<br />परकटे बेचारे कहाँ तक जाएँ<br />'मुझ' जहाज के ये वाशिंदे<br /><br />....बहुत सारगर्भित और सुंदर रचना...इस 'मैं' की सरहदें लांघने में उम्र गुज़र जाती है...Kailash Sharmahttps://www.blogger.com/profile/12461785093868952476noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-81880889397865683912012-02-14T08:43:49.401-08:002012-02-14T08:43:49.401-08:00धन्यवाद...... जी !धन्यवाद...... जी !shalini rastogihttps://www.blogger.com/profile/07268565664101777300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-26498309534435412582012-02-14T08:43:15.407-08:002012-02-14T08:43:15.407-08:00धन्यवाद संजय जी !धन्यवाद संजय जी !shalini rastogihttps://www.blogger.com/profile/07268565664101777300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-23756512576121944222012-02-14T08:42:42.989-08:002012-02-14T08:42:42.989-08:00धन्यवाद शुक्ला जी !धन्यवाद शुक्ला जी !shalini rastogihttps://www.blogger.com/profile/07268565664101777300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-37298503243623928222012-02-14T08:42:10.146-08:002012-02-14T08:42:10.146-08:00धन्यवाद इमरान जी !धन्यवाद इमरान जी !shalini rastogihttps://www.blogger.com/profile/07268565664101777300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-62557171967797076322012-02-11T03:57:08.074-08:002012-02-11T03:57:08.074-08:00बहुत खूब लिखा है आपने! आपकी लाजवाब कविता को पढ़कर ...बहुत खूब लिखा है आपने! आपकी लाजवाब कविता को पढ़कर तारीफ़ के लिए अल्फाज़ कम पर गए!संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-65052243676900464262012-02-11T03:56:46.407-08:002012-02-11T03:56:46.407-08:00आपकी कृति प्रशंशनीय है.आपकी कृति प्रशंशनीय है.संजय भास्कर https://www.blogger.com/profile/08195795661130888170noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-20487712034982504832012-02-10T08:28:02.574-08:002012-02-10T08:28:02.574-08:00बहुत सुन्दर रचना, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति , बधाई.
...बहुत सुन्दर रचना, ख़ूबसूरत भावाभिव्यक्ति , बधाई.<br /><br />meri kavitayen ब्लॉग की मेरी नवीनतम पोस्ट पर भी पधारकर अपना स्नेह प्रदान करें.S.N SHUKLAhttps://www.blogger.com/profile/16733368578135625431noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-37714207270052540162012-02-10T01:43:22.949-08:002012-02-10T01:43:22.949-08:00'मैं' ही तो रूकावट है इस अनंत और आत्मा के ...'मैं' ही तो रूकावट है इस अनंत और आत्मा के बीच इसी से मुक्त होना होगा.....'मैं' सिर्फ 'अहं' है अन्यथा कुछ भी नहीं......गहन अनुभूति है इस पोस्ट में.....शानदार।Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-78172475940047956002012-02-09T08:56:33.177-08:002012-02-09T08:56:33.177-08:00धन्यवाद रश्मि जी, रीनाजी, एवं विद्या जी .......धन्यवाद रश्मि जी, रीनाजी, एवं विद्या जी .......shalini rastogihttps://www.blogger.com/profile/07268565664101777300noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-85942678822474458662012-02-09T07:34:20.413-08:002012-02-09T07:34:20.413-08:00सच में यह मै हमें एक दायरे में सिमित कर देता है
ज...सच में यह मै हमें एक दायरे में सिमित कर देता है <br />जिसके आगे हम कुछ सोच नहीं पाते और सोचते भी है तो केवल अपना स्वार्थ ...<br />यही है "मै" की महिमा ....<br />उत्कृष्ट रचना ....मेरा मन पंछी साhttps://www.blogger.com/profile/10176279210326491085noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-13370676692363560792012-02-09T05:34:27.132-08:002012-02-09T05:34:27.132-08:00वाह
बहुत खूब...
आसान नहीं है इस "मैं" क...वाह <br />बहुत खूब...<br />आसान नहीं है इस "मैं" की दीवार को तोड़ पाना...मगर असंभव भी नहीं...vidyahttps://www.blogger.com/profile/07319211419560198769noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-80237663293511664942012-02-09T05:11:45.862-08:002012-02-09T05:11:45.862-08:00मेरा दिल, मेरी धडकन ,
मेरे ख्याल औ अशरार मेरे
मे...मेरा दिल, मेरी धडकन ,<br />मेरे ख्याल औ अशरार मेरे<br />मेरी खुशियाँ , गम भी मेरे<br />सब गीत मेरे, सब राग मेरे,<br />सब कुछ मैं,<br />मैं और बस मेरा <br />और सिर्फ<br />मेरे तक सीमित<br />अभी 'मैं' से मुक्त कहाँ हो पायी... यह ' मैं ' अहम् नहीं , मुक्ति अहम् से होती है. अपनी पहचान दूसरे को पहचानने में कारगर होती है .रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4315573985225860733.post-14429221368223437812012-02-09T04:57:29.682-08:002012-02-09T04:57:29.682-08:00काश.........
तोड़ ये 'मैं ' का बंधन
थोडा ...काश.........<br />तोड़ ये 'मैं ' का बंधन<br />थोडा तो आगे बढ़ पाती ,<br />कुछ दूजों के दिल की भी बातें<br />कुछ तो समझती<br />कुछ कह पाती ..............<br />शालिनी जी बेहद सुन्दर प्रस्तुति........ प्रेम की उत्पत्ति ही मय से दूर रहने के बाद होती है | अगर प्रेम को परिभाषित किया जाये तो प्रेम = परे(दूर) +मय | अर्थात मय यानि अहंकार को दूर करने के बाद ही प्रेम की सच्ची उत्पत्ति होती है | जहाँ मय है वहां प्रेम नहीं और जहाँ प्रेम है वहा मय नहीं | आपकी रचना में मय को दूर करने की परिकल्पना है | अतः रचना गंभीरता को समेटे हुए है | एक सार्थक सोच के लिए प्रेरित कराती हुई रचना के लिए हार्दिक बधाई |Naveen Mani Tripathihttps://www.blogger.com/profile/12695495499891742635noreply@blogger.com