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Saturday, 27 January 2018

शिव ... कैसे हो पाता है संभव तुमसे

शिव
कैसे हो पाता है संभव तुमसे
एक साथ होना
संहारक और संरक्षक
वैरागी और सांसारिक
प्रेम में लिप्त होते हुए निर्लिप्त
सब में होते हुए भी निस्पृह
सम्पूर्ण होते हुए भी असम्पृक्त
जीवन का अमृत, मृत्यु गरल
धारण करना एक साथ 
कैसे हो पाता है संभव तुमसे
शिव .....

Tuesday, 23 January 2018

तुम ही चक्र, तुम ही धुरी। 
तुम ही पथ, तुम ही गति।
मेरे पथ का आदि तुम,
तुम ही हो हर पथ की इति।
अपूर्णता का तुमसे भान,
संपूर्णता का तुम निधान।
मेरा हरेक विधान तुमसे,
तुम ही हो हर एक विधि।
क्यों नहीं उलटता क्रम यह,
क्यों नहीं पलटती यह नियति।
कभी तुम मेरी करो परिक्रमा 
कभी बन रहूँ मैं तुम्हारी धुरी।
~~~~~~~~~
शालिनी रस्तौगी

अभिमन्यु

अभिमन्यु
बनता जा रहा
आज का युवा
अपने ही चारों ओर
अपने ही द्वारा रचित
चक्रव्यूह में
अपने अंतर्द्वंद्वों को झेलता,
खुद से लड़ता,
स्वयं हथियार बन वार करता
स्वयं ढाल बन बचता।
स्वयं छिन्न-भिन्न हो, निशस्त्र होता।
स्वयं रथचक्र बन
स्वरक्षा हेतु घूमता ,
बनता जाता
क्या नियति के हाथों
इस बार भी धराशायी होगा?
या रण विजेता बन
लौटेगा सदर्प?
अभिमन्यु !!
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शालिनी रस्तौगी