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Saturday, 2 April 2016

फागुन के रंगों में रंगी दो कुण्डलियाँ

फागुन के रंगों में रंगी दो कुण्डलियाँ
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वियोग का रंग
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धरती फागुन में सजी, जोगन जी संताप।
विरहा अगनी तन जले, उड़े बूँद बन भाप।।
उड़े बूँद बन भाप, सखी की हँसी ठिठोली।
करे जिया पर चोट, धँसे जी में बन गोली।।
साजन-सजनी संग, आँख विरहन की भरती।
पड़ती रंग फुहार, रहूँ मैं धीरज धरती ।।
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संयोग का रंग
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बनठन कैसी सज गई, खिला धरा सुरचाप।
रंग फुहारें तन पड़ीं, मिटा हिया का ताप ।।
मिटा हिया का ताप, कि खेली उन संग होली।
भीज गए सब अंग, खिला मन बन रंगोली।।
मन ही मन में राग, दिखाए झूठी अनबन ।
पिया मिले जब संग, फाग मैं खेलूँ बनठन ।।
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शालिनी रस्तौगी