Wednesday 2 September 2015

ढलते ढलते एक आँसू, (ग़ज़ल)


ढलते ढलते एक आँसू, रुखसार पे यूँ जम गया 
बहते बहते वख्त का दरिया कहीं पे थम गया 

पल्कों पे आके ख्वाब इक यूँ ठिठक के रुक गया,
नींद में जैसे अचानक, मासूम बच्चा सहम गया 

नींद, चैन औ सुकूँ सब लूट कर वो ले गया 
लोग कहते सब्र कर कि जो गया वो कम गया 

वो जान थी जो छोड़कर चुपके से हमको थी गई 
बदगुमानी में लगा यूँ, सीने से जैसे ग़म गया ...

यूँ प्यार ने तेरे किया दुनिया से बेगाना हमें 
छोड़ दुनिया जोग में तेरे ये मनवा रम गया.

2 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 04 सितम्बर 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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