Wednesday 26 October 2011

कविता............


दिल के उद्गारों का दमन कर
भावनाओं को पीछे छोड़
विचार पूर्वक लिखी गई
सप्रयास कविता

दिमाग के बोझ से दबी
ह्रदय की दबी – दबी आह सी
भारी भरकम शब्दों के बोझ से
कहराती कविता

बहुत कुछ कह पाने की
कोशिश में
कुछ भी न कह पाती
मन की छिपे भावों को
प्रकट करने को
अकुलाती कविता

अदम्य इच्छाएँ......



रह - रह कर सर उठती हैं 
अदम्य इच्छाएँ 


अचेतन से निकल 
अपने आदिम रूप में ही 
प्रकट होना चाहती हैं 
अदृश्य इच्छाएँ 


तोड़ने को हर बंधन 
रहती हैं आतुर हर पल
बिन सोचे इसका प्रतिफल 
संतुष्टि चाहती हैं 
भ्रम्य इच्छाएँ 


सुनहले ख़्वाब दिखा 
अपने जाल में उलझा 
अजनबी दुनिया में पहुंचा 
मन को भरमाना चाहती हैं 

सुरम्य इच्छाएँ 

Saturday 8 October 2011

हे करुणामय

करुणामय
करुणा कर , दो विश्वास 
अपनी करुणा के अजस्र स्रोत से 
एक बूँद प्रेम - अमय उपहार 
हाथ थाम तेरी करुणा का 
अज्ञान तिमिर कर जाऊं पार 
करुणा कर , दो यह  विश्वास 

प्रतिपल मन में  फन फैलाते 
अहंकार के विषमय व्याल 
सिर झुकते ही सिर उठाता 
ज्ञान फैला कर माया जाल 
आँख मूंदते ही खुल जाता 
मन में भ्रम का छदम् संसार 

सरल समर्पण सिखला कर तुम 
तोड़ दो ये झूठा  भ्रमजाल 
करुणा कर , दो यह  विश्वास 

बस यूँही



 
जो भी गुज़रा दिल की रहगुज़र से
निशान ए पा अपने छोड़ गया 
हर एक जख्म इस कदर गहरा था कि
ता उम्र  टीस बन रिसता रह गया
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